खर और दूषण को ले आई स्वरूप नखा, प्रभु राम ने ठिकाने लगाया
पंचकूला। आदर्श रामलीला एवं ड्रामाटिक क्लब द्वारा 44वें वर्ष की राम की लीला का सातवां दिवस का मंचन किया गया। सोमवार रात्रि को क्लब के बेहतरीन दृश्य पंचवटी में स्वरूप नखा और सीता हरण का मंचन किया गया। प्रधान रमेश चड्ढा ने बताया कि स्वरूपनखा वनों में भटकती हुई पंचवटी आ पहुंची जहां उसने राम-लखन और सीता जी के साथ भेष बदल छेड़ छाड़ करनी चाही जिसके फलस्वरूप लक्ष्मण ने राम जी के कहने पर उसकी नाक-कान काट डाली। बदला लेने के लिए स्वरूप नखा, खर और दूषण को ले आई जिन्हें प्रभु राम ने ठिकाने लगाया। फिर वो रावण के पास गई और उसके कान भरे। रावण ने मामा मारीच के साथ साजिश कर सीता माता को ब्राह्मण का रूप धर पंचवटी से हर लाया। जटायु के रोकने पर रावण ने जटायु से युद्ध कर, जटायु को मूर्छित कर लंका को प्रस्थान किया। रामलीला का पंडाल आज पूरा भरा हुआ था और सभी दर्शक अन्त तक आज की लीला से रोमांचित हुए। कलाकारों ने सभी दृश्यों को जीवांत कर दिखाया। प्रधान रमेश चड्ढा ने बताया कि मुख्य कलाकारों में राम का रोल सौरभ शर्मा, लक्ष्मण का राहुल चौहान, सीता का सुनील, रावण का रोबिन सक्सेना, मारीच का सचिन सक्सेना और स्वरूपनखा का राहुल चौहान और आयुष सक्सेना ने बखूबी निभाया। श्री राम वनों को रवाना हो गए। श्री राम पिता जी द्वारा दिए गए वचनों का पालन करते हुए आज वनों को चले गए। माता कौशल्या के रोकने पर भी राम ने वनों को जाना श्रेष्ठ माना। श्री राम को अकेले वनों को जाता देख सीता जी और लक्ष्मण ने भी साथ चलने को ज़िद्द की और श्री राम जी को विवश हो कर उन्हें साथ ले जाना पड़ा । माता सुमित्रा ने लक्ष्मण को भइया राम की आज्ञा के भीतर रहना के लिए समझा कर तीनों को भारी हृदय से वनवास को भेजा । तीनों को वनवास जाता देख नगरवासी भावुक हो उठे और साथ चल पड़े, परंतु श्री राम नगरवासी और सुमन्त को वनों में, रात को सोता छोड़ आगे को प्रस्थान कर गए । सुमन्त, राम के बिना विरान पड़ी अयोध्या में निराश वापिस लौट आए और दशरथ जी को सारा व्याखान किया कि कैसे-कैसे तीनों ने वनवासी रूप धारण किया और उन्हें लौटा लाने में आसामर्थ रहा । दशरथ जी, तीनों के अब न लौटने की खबर सुन कर सदमे में चले गए । श्रवण कुमार के माता-पिता द्वारा दिया श्राप, दशरथ को याद आया कि " जिस तरह वो पुत्र श्रवण के गम में तड़प-तड़प कर मर रहे हैं, उसी तरह दशरथ भी तड़प-तड़प कर मरेगा और मरते समय कोई भी पुत्र उनसे साथ नहीं होगा " । भरत-शत्रुघ्न ननिहाल में थे और राम-लक्ष्मण वनों में, यही वो लम्हा था जिसके लिए दशरथ को श्रापित किया गया था, अतः दशरथ के पुत्र वियोग में तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए । सभी कलाकारों की अदाकारी को भारी संख्या में आए दर्शकों ने खूब सहराया और दशरथ मरण पर भावुक भी हुए ।
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