राधास्वामी सत्संग दिनोद के निर्माता परमसंत ताराचंद जी महाराज के सौम्या अवतरण दिवस पर साध संगत का उमड़ा जनसैलाब
माता पिता और गुरु का एहसान कभी मत भूलो : परमसंत हुजूर कंवर साहेब जी महाराज
कहा: सन्त को कोई क्या दे सकता है, वो तो इस जगत को देने के लिए आते हैं; सन्त अपने हाथ से काम कर खाते हैं, खुद निर्लेप रहते हैं और दूसरों को निर्लेप करते हैं।
गुरु रूपी दीपक के बिना हमारा अंतर रूपी मकान भी रहता है अंधकारमयी : परमसंत महाराज कंवर साहेब
कहा: सन्तो का वचन युग पलटने के बाद भी शाश्वत रहता है
200 यूनिट रक्त का दान भी किया
दिनोद धाम/भिवानी 02 अक्तूबर,2024।
वो भूमि, वो प्रदेश, वो गांव, वो नगर बहुत ही पूज्यनीय होता है। जहां पर सन्त महापुरुष देह धारण करते हैं। वो दिन बहुत पवित्र होता है, जिस दिन सन्त महापुरुष जन्म लेते हैं। इस दृष्टि से भारत की भूमि और आज का दिन बहुत पाक पवित्र हैं। क्योंकि आज के दिन ही सत्य के प्रतीक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,
ईमानदारी के प्रतीक लाल बहादुर शास्त्री और अध्यात्म के प्रतीक हुजूर महाराज परमसंत ताराचंद जी ने भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लिया था।
यह बानी परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने बुधवार को दिनोद धाम में लाखों की संख्या में उमड़ी संगत के समक्ष फ़रमाई। उल्लेखनीय है कि आज जहां राधास्वामी सत्संग दिनोद के निर्माता परमसंत ताराचंद जी महाराज का 100वां अवतरण दिवस मनाया जा रहा है। वहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 155वीं और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की 121वीं जयंती भी मनाई जा रही है। अपने गुरु को उनके अवतरण दिवस पर स्मरण करते हुए हुजूर कंवर साहेब जी ने कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें साक्षात परमात्मा के दर्शन परमसंत ताराचंद जी महाराज के रूप में हुए। सन्त अमर है, बस चोला बदलते हैं। क्योंकि सन्तो का वचन युग पलटने के बाद भी शाश्वत रहता है। सन्त जनस्थान के रूप में ऐसी भूमि को चुनते है। हुजूर ने कहा कि जैसे बिना दीपक के मकान अंधेरे में रहता है, वैसे ही गुरु रूपी दीपक के बिना हमारा अंतर रूपी मकान भी अंधकारमयी रहता है। हमें एहसान मानना चाहिए कि गुरु ने हमें पल पल सम्भाला। गुरु को मनुष्य मत जानो, उनके साथ घात मत करो, नहीं तो आपको काल आपको नोचेगा। जीवन को बर्बाद मत करो। क्योंकि कोटि जन्म के भटके के बाद आपको यह जीवन मिला है। इसलिए माता पिता का और गुरु का एहसान कभी मत भूलो।
हुजूर ने फरमाया कि सन्त को कोई क्या दे सकता है, वो तो इस जगत को देने के लिए आते हैं। सन्त अपने हाथ से काम करके खाते हैं। खुद निर्लेप रहते हैं और दूसरों को निर्लेप करते हैं।
परमसंत ताराचंद जी महाराज का जीवन भी ऐसा ही था। खुद सदा अभावों में रहे, कष्टो में रहे, लेकिन दुनिया को मालामाल कर दिया। उनके जीवन का एक ही सन्देश था कि लगे रहो मेरे भाई रे, तेरी बनत बनत बन जाई रे। गुरु महाराज हर विचार हर बात पर पहले खुद अमल करते थे, फिर औरों से करवाते थे। वो बेशक किताबी ज्ञान से अनपढ़ थे, लेकिन रूहानी ज्ञान के पी.एच.डी और डी लिट् से कहीं ज्यादा बढ़ कर थे। उन्होंने दुनियादारी के अटूट नातो की पोल खोलते हुए कहा कि भाई, बन्धु, कुटुंब, कबीला ये सब मतलब की यारी है। सब तब तक नातो में बंधे हैं, जब तक मतलब है। लेकिन मतलब निकलते ही ये सारे नाते कड़वे हो जाते हैं।
गुरु महाराज जी कहते थे आप क्या करने इस जगत में आये थे। ये बात विचारों नहीं तो इन नाते रूपी चोरों में रहकर आपकी साहूकारी कभी गिनी नहीं जाएगी। हुजूर कंवर साहेब ने अपने सतगुरु को स्मरण करते हुए भाव विह्वल होकर फरमाया कि जब कोई मेरे से पूछता है कि क्या आपने कभी परमात्मा को देखा है, तो मैं कहता हूं कि ना सिर्फ देखा है बल्कि पल पल संग भी किया है। क्योंकि मेरा गुरु ही परमात्मा है। परमसंत ताराचंद जी महाराज साक्षात कुल मालिक थे।
हुजूर ने कहा कि सब सन्त एक ही घर से आते हैं। सबकी एक ही शिक्षा है कि नेकी करो कमा कर खाओ, पर त्रिया पर धन से नेह ना लगाओ। अपने कर्म सुधारो क्योंकि कर्मो का भक्ति में बहुत महत्व है। जो कर्म आप बनाओगे वो एक न एक दिन आपको भोगना ही पड़ता है। गुरु महाराज जी ने कहा कि छाया और माया का गुण एक है। दोनों कितनी ही कोशिश करो हाथ में नहीं आती। दुसरो के सुख को देखकर जलन मत करो। क्योंकि दूसरे के बारे में बुरा सोचने से पहले आप स्वयं का बुरा कर लेते हो। चोर, डाकू, ठगों के महल किसी ने नहीं देखे। बेईमानी और चोरी का धन जैसे आता है वैसे ही जाता भी है। थोड़ा कमाओ लेकिन मेहनत का कमाओ। यही संदेश परमसंत ताराचंद जी महाराज का था। किसी की मदद कर सको तो तन, मन और धन से मदद करो। यही बात महात्मा गांधी ने कही थी कि बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो, और बुरा मत कहो। मनसा वाचा कर्मणा कभी किसी को दुख मत दो। हुजूर ने कहा कि अपना सुमिरन सैदेव अच्छा रखो। क्योंकि शुद्ध सच्चे ख्याल ही आपको पार लगाएंगे। कहने तक सीमित मत रहो करनी करो। किसी को कटु वचन मत बोलो, ईमानदारी से जीवन जीओ और परमात्मा से प्रीत करो। यही गुण आज जिनका जन्मदिन है उन तीनों महापुरुषों के थे।
गुरु महाराज जी ने कहा कि जिस प्रकार दूध में मख्खन तिल में तेल और लकड़ी में आग हर पल रहती है। लेकिन तीनो दिखाई तभी देते है जब उन्हें मथा, पिसा और घिसा जाता है। इंसान के अंतर में भी परमात्मा सैदेव मौजूद रहता है। लेकिन दिखता और महसूस तभी होता है। जब इंसान स्वयं को मथ, पीस और घिस लेता है। हुजूर ने कहा कि तीनों महापुरषो को सच्चा समर्पण तभी है। जब आप उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लेकर जाओगे। जो बीत गया उसे भूल कर आगे की ठीक कर लो। काल रूपी चूहों की कुतरी हुई जिंदगी रूपी दौलङी को अब भी अगर सम्भाल लोगे तो भी बची हुई रुई से आप कुछ ऐसा तो बुन लोगे कि आप का काम चल जायेगा। जीवन रूपी भवसागर में सतगुरु रूपी नैया का सहारा ले लो। सतगुरु पावर हाउस है जो आपके जीवन को रोशन कर देगा। मां बाप की सेवा करो, बड़े बुजुर्गों का आदर करो, उत्तमता को सिद्ध करो, बच्चों को अच्छे संस्कार दो, बुरी संगति से बचो नशे विषयो से दूर रहो। सत्संग सतगुरु और सतनाम को धारो। सैदेव महाराज ताराचंद जी के ऋणी रहो। क्योंकि उनके दम पर ही हम सब हैं। इस अवसर पर संगत ने 200 यूनिट रक्त का दान भी किया। रक्तदान को महादान बताते हुए हुजूर महाराज जी ने कहा कि इस पावन पर्व पर पर उपकार का फल आपको निश्चित रूप से मिलेगा।
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