वित्तीय संकट में फंसा नगर निगम चंडीगढ़, 'अपनों' की नीतियों पर उठे सवाल
निगम के पास नहीं टूटी सड़कों पर पैच लगाने के पैसे
कमिश्नर वितीय संकट से बाहर निकालने में दिन-रात जुटे
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 16 दिसम्बर। "हमें तो अपनों ने ही लूटा, गैरों में क्या दम था," यह मशहूर कहावत चंडीगढ़ नगर निगम की मौजूदा स्थिति पर सटीक बैठती है। नगर निगम इन दिनों गहरे वित्तीय संकट से जूझ रहा है, जहां संसाधनों की कमी और कुप्रबंधन की वजह से जनता को मूलभूत सुविधाओं में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। नगर निगम कमिश्नर इस वितीय संकट से बाहर निकालने को लेकर दिन-रात लगे हुए हैं, मगर प्रशासन से कोई मदद नहीं मिल रही। कमिश्नर व सभी अधिकारियों ने अपने खर्चों में भी 50% कटौती की है।
सूत्रों के अनुसार, निगम के पास न तो कर्मचारियों को समय पर वेतन देने के लिए पर्याप्त फंड है और न ही लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए आवश्यक धनराशि। जिसके कारण जलापूर्ति, सफाई और सड़क निर्माण जैसे बुनियादी कार्य धीमी गति से चल रहे हैं। आज हालात यह हो गई है कि नगर निगम के पास टूटी सड़कों पर पैच लगाने के भी पैसे नहीं है। पिछले साल बरसात में हुई सड़कों के नुकसान को भी अब तक ठीक नहीं करवाया जा सका है।
विपक्षी दलों और स्थानीय निवासियों का कहना है कि निगम की खराब आर्थिक स्थिति के लिए प्रशासनिक कुप्रबंधन और अपनों की 'गलत नीतियां' जिम्मेदार हैं। खासतौर पर, कर वसूली और बजट प्रबंधन में लापरवाही ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
क्या कहते हैं अधिकारी?
निगम अधिकारियों का कहना है कि केंद्र और प्रशासन से पर्याप्त फंड न मिलने के कारण यह संकट उत्पन्न हुआ है। हाल ही में निगम ने आय बढ़ाने के लिए नए कर लगाने और मौजूदा शुल्कों में बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा, लेकिन इसका सीधा असर आम जनता पर पड़ने की संभावना है।
जनता की नाराजगी
नगर निगम की कार्यप्रणाली से नाराज जनता ने प्रशासन पर सवाल उठाए हैं। एक स्थानीय निवासी ने कहा, "हमने निगम पर भरोसा किया, लेकिन हालात यह हैं कि जहां पानी कम था, वहीं हमारी नाव डूब गई। यह स्थिति तभी आती है जब जिम्मेदार लोग ही लापरवाही करते हैं।"
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि नगर निगम को अपनी आय के वैकल्पिक स्रोत खोजने होंगे और खर्चों में कटौती करनी होगी। साथ ही, वित्तीय पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी, ताकि जनता का भरोसा बहाल हो सके।
इस वित्तीय संकट ने चंडीगढ़ जैसे आदर्श शहर की छवि पर गहरा असर डाला है। अब देखना होगा कि निगम इस स्थिति से उबरने के लिए कौन से कदम उठाता है।
आमदनी घटने और खर्च बढ़ने से बिगड़ा संतुलन
नगर निगम की आमदनी का प्रमुख स्रोत प्रॉपर्टी टैक्स, यूजर चार्ज और केंद्र सरकार से मिलने वाला ग्रांट है। हालांकि, हाल के वर्षों में कर वसूली में कमी और केंद्र से मिलने वाली आर्थिक सहायता में कटौती ने स्थिति और खराब कर दी है।
शहरवासियों को हो रही असुविधा
शहर में साफ-सफाई, कचरा प्रबंधन और जल आपूर्ति जैसी बुनियादी सेवाओं पर असर पड़ा है। सफाई कर्मचारी संघ ने वेतन न मिलने पर हड़ताल की चेतावनी दी है, जिससे शहर में कचरे का संकट गहराने की संभावना है।
विपक्ष का आरोप: 'अपनों' को फायदा पहुंचाने वाली नीतियां
विपक्षी नेताओं का कहना है कि नगर निगम में ठेकों का आवंटन और योजनाओं की स्वीकृति अपनों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई, जिससे शहरवासियों के हितों की अनदेखी हुई।
"नगर निगम के अधिकारी और पार्षद गैर-जिम्मेदाराना तरीके से काम कर रहे हैं। इस वित्तीय संकट के लिए उनकी गलत नीतियां जिम्मेदार हैं," एक विपक्षी नेता ने कहा।
सुधार की मांग
शहरवासियों और विभिन्न संगठनों ने नगर निगम से जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की मांग की है। उन्होंने कर वसूली में सुधार, गैर-आवश्यक खर्चों पर रोक और ठेकों के आवंटन में पारदर्शिता की मांग की है।
नगर निगम चंडीगढ़ के लिए यह समय गंभीर आत्मनिरीक्षण का है। यदि समय रहते सुधार नहीं किए गए, तो वित्तीय संकट का बोझ सीधे शहरवासियों पर पड़ेगा।
किसे ठहराया जा रहा है जिम्मेदार?
नगर निगम के कई पार्षद और स्थानीय निवासी इस बदहाल स्थिति के लिए एक पूर्व निगम कमिश्नर और चीफ इंजीनियर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। उनका कहना है कि इन अधिकारियों के कार्यकाल में फंड का गलत इस्तेमाल हुआ, जिससे निगम की आर्थिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित हुई।
सूत्रों के मुताबिक, उस दौरान कुछ ऐसी परियोजनाओं पर फिजूलखर्ची की गई, जो न तो पूरी हुईं और न ही उनका कोई ठोस लाभ नजर आया। इसके अलावा, ठेकेदारों को भुगतान में अनियमितताएं और कर वसूली में ढिलाई भी मौजूदा संकट की वजह मानी जा रही है।
वर्तमान स्थिति
फंड की कमी के चलते कर्मचारियों के वेतन में देरी हो रही है और कई जरूरी योजनाएं ठप पड़ी हैं। सफाई, जलापूर्ति और सड़क निर्माण जैसे बुनियादी कार्यों पर भी असर पड़ा है। जनता के लिए यह चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि समस्याएं बढ़ने के बावजूद समाधान के प्रयास नजर नहीं आ रहे।
पार्षदों का गुस्सा
एक पार्षद ने कहा, "नगर निगम का खजाना खाली होने के लिए पूर्व कमिश्नर की गलत नीतियां जिम्मेदार हैं। उन्होंने विकास के नाम पर फिजूलखर्ची की, जिससे आज यह दिन देखना पड़ रहा है। नगर निगम में 1400 आउटसोर्स कर्मचारी भर्ती किए गए मगर इन कर्मचारियों का आज तक निगम के अधिकारी यह नहीं बता पाए कि यह कर्मचारी कहां-कहां किस विंग में तैनात है। नगर पार्षद प्रेमलता का कहना है कि पिछले 3 सालों के नगर निगम द्वारा कराए के विकास कार्यों की विजिलेंस व विभागीय जांच होनी चाहिए ताकि पता चल सके कि कहां घोटाला हुआ है। वहीं पार्षद दिलीप शर्मा का भी कहना है कि निगम के अधिकारियों ने जरूरी कार्य की बजाय गैर जरूरी कार्यों पर निगम का पैसा पानी की तरह बहा है। जिसके कारण आज निगम के सभी विकास कार्य रुक गए हैं।
"विशेषज्ञों का मानना है कि नगर निगम को आय बढ़ाने के लिए वैकल्पिक उपाय अपनाने होंगे और खर्चों में कटौती करनी होगी। साथ ही, पारदर्शिता और जवाबदेही तय करनी होगी ताकि भविष्य में ऐसे हालात न बनें।
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24 घंटे पानी देने का वादा हवा हवाई: शास्त्री नगर में साइकिल ट्रैक पर चल रही पानी की लाइन
बापुधाम व शास्त्री नगर के पास एक साल से अधिक समय से पीने के पानी की लाइन साइकिल ट्रैक पर चल रही है, जिससे स्थानीय निवासियों और राहगीरों को भारी असुविधा हो रही है। पिछले साल जुलाई 2023 में बरसात के दौरान यह वाटर सप्लाई लाइन टूट गई थी, लेकिन आज तक इसे ठीक नहीं किया गया। काम चलाने के लिए पुल के ऊपर ही साईकल ट्रेक पर ही जोड़कर चालू कर दिया। पार्षद दलीप शर्मा ने कहा कि मनीमाजरा में 24 घण्टे पानी देने का वायदा किया जा रहा है, मगर निगम के अधिकारियों को 1 साल से यह लाईन दिखाई नही दे रही है। इस खराब व्यवस्था के कारण सड़क पर पानी की पाइपलाइन से ट्रैफिक बाधित हो रहा है। वाहन चालकों को साइकिल ट्रैक पर पानी की पाइपलाइन होने के कारण परेशानी होती है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है।निवासियों ने बताया कि प्रशासन ने 24 घंटे पानी की सप्लाई का वादा किया था, लेकिन मौजूदा स्थिति में न तो पाइपलाइन की मरम्मत हो रही है और न ही पानी की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित हो पा रही है। स्थानीय लोगों ने कई बार प्रशासन से शिकायत की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
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