गोपाष्टमी महोत्सव पर विशेष
गोपाष्टमी पर्व का महत्व
कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से मनाई जाती गोपाष्टमी
हमारी संस्कृति में गाय का विशेष स्थान
रमेश गोयत
चंडीगढ़/पंचकूला,08 नवम्बर। कार्तिक शुक्ल पक्ष के दिन से गोपाष्टमी मनाई जाती हैं। भगवान कृष्ण के जीवन में गौ का महत्व बहुत अधिक था। गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था। इन्होने गाय के महत्व को सभी के सामने रखा। स्वयं भगवान ने गौ माता की सेवा की। यह भी कहा जाता है कृष्ण जी ने अपनी सबसे छोटी ऊँगली से गोबर्धन पर्वत को उठा लिया था, जिसके बाद से उस दिन गोबर्धन पूजा की जाती है। ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचाने के लिए कृष्ण जी ने 7 दिन तक पर्वत को अपनी एक ऊँगली में उठाये रखा था। गोपाष्टमी के दिन ही भगवान् इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोबर्धन पर्वत नीचे रखा।
हमारी संस्कृति में गाय का विशेष स्थान हैं। गाय को मां का दर्जा दिया जाता हैं क्यूंकि जैसे एक मां का ह्रदय कोमल होता हैं, वैसा ही गाय माता का होता हैं। जैसे एक माँ अपने बच्चो को हर स्थिती में सुख देती हैं, वैसे ही गाय भी मनुष्य जाति को लाभ प्रदान करती हैं। गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र और गोबर भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। गोपाष्टमी हमें संकेत देती हैं कि सर्वाधिक पूज्यनीय गौ माता के प्रति हमें भी कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए। पुरातन युग में जब स्वयं श्री कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा, तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गाय चराना चाहते हैं तथा गाय की सेवा करना चाहते है। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गाय ही चरायेंगे। नन्द बाबा ने गाय चराने के लिए पंडित महाराज को मुहूर्त निकालने को कह दिया। पंडित बाबू ने पूरा पंचाग देख लिया और बड़े अचरज में आकर कहा कि अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नही हैं, अगले बरस तक। शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था। वह दिन गोपाष्टमी का था। जब श्री कृष्ण ने गाय पालन शुरू किया।
उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गाय को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गाय को चारण के लिए ले जाते।
गोपाष्टमी पूजा विधि
गोपाष्टमी के दिन गाय की पूजा पुरे रीती रिवाज से पंडित जी के द्वारा कराई जाती है। सुबह ही गाय और उसके बछड़े को नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं, अन्य आभूषण पहनायें जाते हैं। गाय माता की परिक्रमा भी की जाती हैं तथा हरा चारा दिया जाता है। इस दिन सभी लोग सपरिवार गौशाला में जाकर गाय की पूजा करें, उन्हें गंगा जल, फूल चढाए, तिलक करें, दिया जलाकर गुड़ एवं हरा मटर खिलाए। पुराणों में गाय के पूजन, उसकी रक्षा, पालन-पोषण को मनुष्य का कर्तव्य माना गया हैं। हम सभी को गौ माता की सेवा करना चाहिये, क्यूंकि वह भी हमारा एक माँ की तरह ही पालन करती हैं। इस विशेष अवसर पर गौमाता पूजन-परिक्रमा कर अपने हाथों से ग्रास देकर विश्वमागल्य की प्रार्थना करें।
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