पहली बार के विधायकों का मुख्यमंत्री बनना: बीजेपी की नई परंपरा
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 21 फ़रवरी। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एक नई राजनीतिक परंपरा स्थापित होती दिख रही है, जहां पहली बार विधायक बनने वाले नेताओं को मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया जा रहा है। इस प्रवृत्ति की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक सफर से जुड़ी है, जब वे बिना किसी विधायी अनुभव के सीधे गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। इसके बाद, उन्होंने पहली बार सांसद बनकर प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस प्रयोग को बीजेपी ने संस्थागत रूप दे दिया है और लगातार विभिन्न राज्यों में इसे दोहराया जा रहा है।
रेखा गुप्ता: दिल्ली की नई मुख्यमंत्री
दिल्ली की राजनीति में यह प्रवृत्ति हाल ही में तब देखने को मिली जब पहली बार विधायक बनीं रेखा गुप्ता को मुख्यमंत्री बना दिया गया। वे शालीमार बाग सीट से विधायक चुनी गईं और इससे पहले दिल्ली की मेयर और पार्षद भी रह चुकी हैं। उनके मुकाबले कई अनुभवी नेताओं की दावेदारी थी, जिनमें परवेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता और मोहन सिंह बिष्ट शामिल थे। खासकर परवेश वर्मा ने तो आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को हराया था और उन्हें मुख्यमंत्री पद का मजबूत दावेदार माना जा रहा था। लेकिन बीजेपी ने रेखा गुप्ता को चुना, जिससे पार्टी की इस नीति की पुष्टि होती है।
राजस्थान में भजनलाल शर्मा की नियुक्ति
दो साल पहले यही प्रयोग राजस्थान में दोहराया गया था। राज्य में कई वरिष्ठ नेता मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन पार्टी ने पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बना दिया। भजनलाल शर्मा पार्टी संगठन में सक्रिय रहे थे, लेकिन विधायक बनने से पहले उन्होंने कभी कोई विधानसभा चुनाव नहीं जीता था। 2023 में पहली बार विधायक बनते ही उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया, जिससे वसुंधरा राजे और राज्यवर्धन राठौड़ जैसे दिग्गज नेता पीछे रह गए।
गुजरात में भूपेन्द्र पटेल का चयन
इससे पहले 2022 में गुजरात में विजय रूपाणी को हटाकर पहली बार विधायक बने भूपेन्द्र पटेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। यह निर्णय भी पार्टी की इसी रणनीति का हिस्सा था, जिसमें संगठन से जुड़े नए चेहरों को सत्ता में लाया जा रहा है।
हरियाणा से हुई थी इस नीति की शुरुआत
इस परंपरा की नींव 2014 में हरियाणा में रखी गई थी, जब पहली बार भाजपा ने राज्य में सरकार बनाई और मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया गया। खट्टर उस समय पहली बार विधायक बने थे, जबकि रामबिलास शर्मा, अनिल विज और कैप्टन अभिमन्यु जैसे वरिष्ठ नेता मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे।
भाजपा की रणनीति और प्रभाव
इस नीति के पीछे पार्टी की रणनीति यह हो सकती है कि नए चेहरों को आगे लाकर विरोधियों को चौंकाया जाए और संगठन की पकड़ मजबूत की जाए। इस प्रयोग ने साबित किया है कि भाजपा परिवारवाद से अलग हटकर संगठन की निष्ठा और केंद्रीय नेतृत्व की पसंद को प्राथमिकता देती है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में यह प्रयोग सफल भी हो रहा है।
क्या यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी?
भाजपा के इस कदम से राजनीति में नई प्रवृत्ति देखी जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में अन्य राज्यों में भी इसी रणनीति को अपनाया जाता है या नहीं।
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