हरियाणा के शहरी निकाय चुनावों में नोटा (NOTA) विकल्प के पास चुनाव रद्द करने की क्षमता
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा वर्ष 2018 में जारी एक आदेशानुसार नोटा को कल्पित चुनावी प्रत्याशी का दर्जा
अगर न.नि. मेयर या न.प. अध्यक्ष या वार्डों में नोटा को पड़े वोट अन्य उम्मीदवारों से अधिक, तो न केवल वहां का चुनाव होगा रद्द बल्कि पिछले सभी उम्मीदवार ताज़ा चुनाव लड़ने हेतू अयोग्य – एडवोकेट हेमंत कुमार
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 22 फरवरी। हरियाणा प्रदेश के कुल 33 नगर निकायों ( 8 नगर निगमों, 4 नगरपालिका परिषदों एवं 21 नगरपालिका समितियों ) के आम चुनाव एवं अम्बाला और सोनीपत नगर निगमों के मेयर पद उपचुनाव. 1 नगरपालिका परिषद एवं 2 नगरपालिका समितियों के अध्यक्ष पद ला उपचुनाव एवं 3 नगरपालिका समितियों में 1-1 वार्ड सदस्यों (पार्षदों) के उपचुनाव हेतू आगामी 2 मार्च ( पानीपत नगर निगम के लिए 9 मार्च) को मतदान निर्धारित है जबकि 12 मार्च को मतगणना होगी.
इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और म्यूनिसिपल कानून के जानकार हेमंत कुमार ( 9416887788) ने एक रोचक परन्तु महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि प्रदेश के सभी निकायों में जहाँ नगर निगम मेयर और नगरपालिका या नगरपरिषद अध्यक्ष का प्रत्यक्ष (सीधा) चुनाव एवं उन निकायों के अंतर्गत पड़ने वाले सभी वार्डों में जहाँ से सम्बन्धी निकाय के सदस्य ( जिन्हें आम भाषा में पार्षद कहा जाता है हालांकि पार्षद शब्द हरियाणा के दोनों म्युनिसिपल कानूनों में नहीं है) जितने भी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं, उन सभी का मुकाबला नोटा विकल्प से भी है.
इस संबंध में उन्होंने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि नवंबर, 2018 के बाद हरियाणा निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदेश में नगर निकायों के जितने भी चुनाव करवाये गए हैं उनमें मतदान के दौरान प्रयुक्त होने वाली इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम.) में न केवल नोटा -NOTA (नन ऑफ़ द अबाव- अर्थात उपरोक्त में से कोई भी नहीं) का बटन/विकल्प दिया गया है बल्कि इसी के साथ आयोग ने उसके द्वारा जारी एक आदेश से यह भी व्यवस्था लागू कर रखी है कि चुनावों में NOTA को एक फिक्शनल इलेक्शन कैंडिडेट (कल्पित चुनावी प्रत्याशी) माना जाएगा एवं उसके पक्ष में पड़ी वोटों को रिकॉर्ड पर लिया जाएगा.
22 नवंबर 2018 को हरियाणा के तत्कालीन राज्य निर्वाचन आयुक्त डॉ. दलीप सिंह द्वारा जारी आदेशानुसार ऐसी व्यवस्था तत्काल प्रभाव से प्रदेश में सभी स्थानीय चुनावों पर लागू की गई. महाराष्ट्र, दिल्ली और पुडुचेरी में भी ऐसी व्यवस्था लागू है.
हेमंत ने बताया कि उपरोक्त व्यवस्था में अगर किसी चुनावी क्षेत्र में (अर्थात नगर निगम / नगरपालिका परिषद/ नगरपालिका समिति के मेयर या अध्यक्ष के सम्बन्ध में पूरे निकाय क्षेत्र में एवं वार्ड सदस्य ( जिन्हें आम लोग
पार्षद कहते हैं हालांकि पार्षद शब्द हरियाणा म्यूनिसिपल कानून में नहीं है) के सम्बन्ध में प्रासंगिक वार्ड में अगर NOTA के पक्ष में डाले गए वोट एवं किसी प्रत्याशी को डाले गए वोट सर्वाधिक अर्थात शेष उम्मीदवारों को व्यक्तिगत प्राप्त वोटों से अधिक हालांकि दोनों को प्राप्त
आपस में बराबर हैं, तो ऐसी स्थिति में उस सर्वाधिक वोट लेने वाले प्रत्याशी को (न कि NOTA को) उस चुनावी क्षेत्र से विजयी घोषित कर दिया जाएगा.
परन्तु अगर NOTA के पक्ष में डाले गए वोट उस चुनावी क्षेत्र में चुनाव लड़ रहे सभी प्रत्याशियों को व्यक्तिगत तौर पर प्राप्त वोटों से अधिक हैं, तो उस परिस्थिति में किसी भी प्रत्याशी को उस वार्ड से निर्वाचित घोषित नहीं किया जाएगा एवं संबंधित रिटर्निंग आफिसर द्वारा इस सम्बन्ध में निर्वाचन आयोग को सूचित किया जाएगा एवं आयोग द्वारा उस चुनावी क्षेत्र में वह चुनाव पूर्णतया रद्द कर दोबारा चुनाव करवाया जाएगा जिसमें हालांकि उन सभी पिछले प्रत्याशियों को ताजा चुनाव नहीं लड़ने दिया जाएगा जिन्होंने पिछले चुनाव, जो रद्द कर दिया गया, में मतगणना में NOTA को प्राप्त हुए वोटों से कम वोट प्राप्त किए थे.
इसका सीधा अर्थ यह है कि दोबारा करवाए जाने वाले चुनाव में सभी प्रत्याशी नए ही होंगे एवं पिछले सभी उम्मीदवार उस नगर निकाय क्षेत्र/वार्ड में दोबारा चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माने जायेंगे.
बहरहाल, हरियाणा निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आदेश में आगे यह उल्लेख किया गया है कि अगर ताजा चुनाव की मतगणना में भी NOTA के पक्ष में सर्वाधिक वोट पड़ते हैं, तो ऐसी परिस्थिति में तीसरी बार ताजा चुनाव नही करवाया जाएगा एवं NOTA के बाद सर्वाधिक वोट हासिल करने वाले दूसरे नंबर के प्रत्याशी को उस चुनाव में विजयी घोषित कर दिया जाएगा.
हेमंत ने आगे बताया कि सुप्रीम कोर्ट के तीन जज बेंच द्वारा सितम्बर 2013 में दिए गए एक निर्णय – पी.यू.सी.एल. बनाम भारत सरकार में देश की सर्वोच्च अदालत ने चुनावों में NOTA के विकल्प का प्रावधान डालने बारे भारतीय चुनाव आयोग को निर्देश तो दिया था परन्तु उसमे ऐसा कुछ नही था जैसा हरियाणा निर्वाचन आयोग ने व्यवस्था लागू कर रखी है.
लिखने योग्य है कि भारतीय चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय के बाद आज तक करवाए गए लोक सभा एवं राज्य विधानसभाओ के सभी आम चुनाव/उप- चुनावों में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में NOTA का विकल्प/बटन तो देता आया है परन्तु उसे कभी चुनावों में कल्पित चुनावी प्रत्याशी नहीं माना जाता है एवं उसके पक्ष में डाले गये वोटों की संख्या/बहुमत के आधार पर कहीं भी ताजा चुनाव नही करवाया जाता है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष अप्रैल, 2024 में भारतीय चुनाव आयोग से इस बारे में जवाब देने को कहा कि लोकसभा/ विधानसभा के चुनाव में नोटा के पक्ष में डाले गए वोट अगर उस चुनाव में लड़ रहे सभी उम्मीदवारों से अधिक होते हैं, तो क्या वहाँ चुनाव रद्द कर दोबारा चुनाव कराना चाहिए.
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