आरटीआई खुलासा: 30 साल से बकाया 32 करोड़ रुपए वसूलने में नाकाम रहा चंडीगढ़ नगर निगम
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 15 मार्च। शहर की म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन की आर्थिक तंगी की एक बड़ी वजह एडहॉकिज़्म (अस्थायी कार्यशैली) है, जिससे प्रशासन लगातार कमजोर हो रहा है। समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट आर.के. गर्ग द्वारा दायर सूचना के तहत बड़ा खुलासा हुआ है कि नगर निगम पिछले 30 साल से 32 करोड़ रुपये की बकाया राशि वसूलने में असफल रहा है।
आर.के. गर्ग ने बताया कि चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा अधिग्रहित कुछ जमीनों के एवज में निगम को यह राशि मिलनी थी, लेकिन निगम अपने ही पैसे लेने में असमर्थ साबित हुआ है। यह रकम 2023 में रिकवरी के लिए चिन्हित की गई थी, जिसमें 31 करोड़ 79 लाख 24 हजार 443 रुपये की मूल राशि शामिल है, जबकि ब्याज अलग से जुड़ता जा रहा है।
मालोया गांव का मामला: ₹31.79 करोड़ का मुआवजा लंबित
ऑडिट रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि केवल मालोया गांव की अधिग्रहित भूमि के लिए नगर निगम को ₹31.79 करोड़ की राशि (ब्याज को छोड़कर) मिलनी थी।
₹7.05 करोड़ की राशि वर्ष 2004 में पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में जमा की गई थी। यदि इस पर ब्याज जोड़ा जाए, तो आज यह राशि ₹20 करोड़ से अधिक हो सकती है।
₹24 करोड़ की राशि भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने कोर्ट में जमा कराई थी।
कानून के तहत, भूमि अधिग्रहण अधिकारी को तय समय के बाद मुआवजा राशि अदालत में जमा करनी होती है। निगम को इस राशि को क्लेम करना था, लेकिन 30 वर्षों में निगम ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की।
ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, नगर निगम के पास इन गांवों की अधिग्रहित ग्राम पंचायत भूमि के स्वामित्व का स्पष्ट रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं था। न तो अधिग्रहण की तिथि का सही दस्तावेज था और न ही इस बात की जानकारी थी कि निगम को कितनी राशि मिलनी चाहिए। इसका सीधा मतलब है कि चंडीगढ़ प्रशासन और निगम के बीच समन्वय की भारी कमी थी, जिससे यह मामला लंबित रहा।
नगर निगम की वित्तीय स्थिति क्यों कमजोर?
गर्ग ने बताया कि चंडीगढ़ नगर निगम का फाइनेंशियल क्रंच (आर्थिक संकट) इसी तरह की गड़बड़ियों और प्रशासनिक लापरवाहियों के कारण बढ़ता जा रहा है।
बार-बार बदलते प्रशासनिक अधिकारी – अधिकारी बदलते रहते हैं और जब तक उन्हें बकाया राशि वसूलने की प्रक्रिया समझ में आती है, तब तक उनका कार्यकाल समाप्त हो जाता है।
बकाया टैक्स वसूली में लापरवाही – कई ऐसे टैक्सदाता हैं, जो वर्षों से टैक्स नहीं भर रहे, लेकिन निगम के पास कोई ठोस योजना नहीं है कि इनसे वसूली कैसे की जाए।
रिकॉर्ड का अभाव – निगम के पास कोई स्पष्ट डेटा नहीं है कि उनके पैसे कहां से आने हैं और उन्हें कैसे वसूल किया जाए।
क्या है जमीन अधिग्रहण और कोर्ट में जमा रकम का मामला?
आर.टी.आई. के जवाब में यह भी सामने आया कि सरकार ने कुछ जमीन अधिग्रहित की थी, जिसके बदले नगर निगम को एक मोटी राशि मिलनी थी, लेकिन वह रकम अब तक नगर निगम को नहीं मिली।
इसके अलावा, निगम की कई राशियां कोर्ट और बैंकों में फंसी हुई हैं, लेकिन इन पैसों को निकालने की कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही।
सैलरी देने के लिए प्रॉपर्टी गिरवी रखने की जरूरत नहीं!
गर्ग ने कहा कि नगर निगम की वित्तीय स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वह कर्मचारियों की सैलरी देने के लिए अपनी संपत्तियां गिरवी रखने की बात कर रहा है। लेकिन अगर निगम अपने बकाया पैसों की सही से वसूली करे, तो उसे इस स्थिति का सामना ही नहीं करना पड़ेगा।
निगम को क्या करना चाहिए
आरके गर्ग ने निगम अधिकारियों को सलाह देते हुए कहा कि निगम अपने सभी बकाया रिकॉर्ड को इकट्ठा करे और तुरंत कार्रवाई शुरू करे। सरकार से अपनी अधिग्रहित जमीनों की राशि तुरंत मांगे। कोर्ट और बैंकों में फंसे पैसों की कानूनी प्रक्रिया तेज करे।बकाया टैक्स न भरने वालों पर सख्त कार्रवाई करे। अब देखना यह है कि चंडीगढ़ नगर निगम इस बड़े खुलासे के बाद कोई ठोस कदम उठाएगा या फिर आर्थिक संकट का रोना रोता रहेगा।
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