निजी स्कूलों की मनमानी: महंगी किताबों से अभिभावक परेशान, प्रशासन लाचार
रमेश गोयत
चंडीगढ़/पंचकूला, 30 मार्च। ट्राईसिटी के निजी स्कूलों में मनमानी फीस के साथ-साथ किताबों और स्टेशनरी की कीमतों ने भी अभिभावकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। स्कूलों की ओर से चिह्नित दुकानों से ही महंगी किताबें खरीदने की बाध्यता के कारण अभिभावक आर्थिक रूप से परेशान हैं। स्थिति यह है कि इन दुकानों पर किताबें बिना बिल के बेची जा रही हैं, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
स्कूल-बुक विक्रेताओं की मिलीभगत से बढ़ा बोझ
निजी स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं की मिलीभगत के कारण न सिर्फ अभिभावकों पर अतिरिक्त खर्च का बोझ पड़ रहा है, बल्कि बच्चों के भारी भरकम बस्ते की समस्या भी बढ़ती जा रही है। कमीशनखोरी के कारण छात्रों को उन किताबों को भी खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिनकी आवश्यकता नहीं होती।
प्रशासन की निष्क्रियता: चंडीगढ़ प्रशासन में स्कूल शिक्षा निदेशक और एक्साइज विभाग के कलेक्टर का पद एक ही अधिकारी के पास होने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा रही है। पहले यह तर्क दिया जाता था कि टैक्स चोरी और बिना बिल के किताबों की बिक्री पर एक्साइज विभाग को सूचना दे दी गई है, लेकिन अब जब जिम्मेदारी एक ही अधिकारी के पास है, तो भी स्थिति जस की तस बनी हुई है।
महंगी किताबों के कारण अभिभावकों की बढ़ी मुश्किलें
नर्सरी कक्षा की किताबें ₹2800 से ₹5000 तक पहुंच गई हैं, जबकि बीए फाइनल वर्ष की सारी किताबें ₹2860 में उपलब्ध हैं।
एलकेजी के लिए किताबों का सेट ₹3400 से ₹3600 में बेचा जा रहा है।
जैसे-जैसे कक्षा बढ़ती है, किताबों की कीमतें और भी अधिक हो जाती हैं।
पुस्तक विक्रेताओं का तर्क: ‘स्कूलों से पूछो’
जब कुछ पुस्तक विक्रेताओं से किताबों की कीमतों को लेकर सवाल किया गया, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि स्कूलों से ही किताबों के चयन, उनकी कीमत और छूट को लेकर फैसले होते हैं। पुस्तक विक्रेता सिर्फ किताबों की आपूर्ति करने का काम कर रहे हैं।
प्रशासन के आदेशों का पालन नहीं
चंडीगढ़ प्रशासन ने शिकायतों के बाद कुछ दुकानदारों को नोटिस जारी कर अपनी औपचारिकता पूरी कर ली, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। प्रशासन के अधिकारी अक्सर बयान देते हैं कि एनसीईआरटी की बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें लगवाने वाले स्कूलों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी, लेकिन हकीकत यह है कि अधिकांश निजी स्कूलों में महंगी किताबें ही बिक रही हैं।
हर साल बदल जाती हैं किताबें
अभिभावकों का सवाल है कि यदि सिलेबस में बदलाव नहीं होता, तो फिर स्कूल हर साल नई किताबें क्यों लगवाते हैं? पंचकूला निवासी राकेश अग्रवाल ने कहा, ‘यदि शिक्षा विभाग सिलेबस में बदलाव करता है, तब तो किताबें बदलने का औचित्य समझ में आता है, लेकिन बिना किसी बदलाव के प्रकाशक बदलना केवल मुनाफाखोरी को दर्शाता है।’
प्रशासन की गाइडलाइंस का पालन नहीं
प्रशासन द्वारा किताबों की बिक्री को लेकर गाइडलाइंस जारी की गई हैं, लेकिन अभिभावकों की मदद के लिए कोई हेल्पलाइन नंबर या शिकायत दर्ज कराने की सुविधा नहीं दी गई है। शिक्षा विभाग को जल्द से जल्द एक हेल्पलाइन शुरू करनी चाहिए ताकि शिकायतें दर्ज करवाई जा सकें।
शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया
चंडीगढ़ के स्कूल शिक्षा निदेशक हरसुहिंदर पाल बराड़ ने कहा, ‘कोई भी पुस्तक विक्रेता अभिभावकों को जबरन अतिरिक्त सामग्री खरीदने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। विभाग द्वारा सरप्राइज विजिट भी की जाएंगी। यदि कोई नियमों का उल्लंघन करता पाया गया, तो सख्त कार्रवाई होगी।’
ट्राईसिटी के निजी स्कूलों में किताबों की बिक्री को लेकर बढ़ती मनमानी से अभिभावक बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। प्रशासन को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाए, सख्त निगरानी रखे और दोषी स्कूलों तथा विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई करे, ताकि अभिभावकों को आर्थिक शोषण से बचाया जा सके।
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