राज्यसभा सांसद सतनाम सिंह संधू ने शून्यकाल के दौरान विलुप्त होने के कगार पर पहुँची भारत की विविध भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों के संरक्षण का उठाया मुद्दा
साहित्य के डिजिटलीकरण, भारतीय भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों के शब्दकोश के निर्माण की माँग की
राज्यसभा सांसद ने NEP की प्रशंसा की जिसका उद्देश्य भारत की भाषाई विरासत को संरक्षित करना
राज्य सभा सांसद सतनाम सिंह संधू ने आज राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान विलुप्त होने के कगार पर खड़ी भारत की विविध भाषाओं और क्षेत्रीय बोलियों के संरक्षण का मुद्दा उठाया। वर्तमान बजट सत्र के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए सांसद सतनाम सिंह संधू ने कहा, “भारत एक ऐसा देश था, जहां 120 से अधिक विविध भाषाएं और 270 मातृभाषाएं थीं, जो अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों द्वारा बोली जाती थी। इसके अलावा 19,500 क्षेत्रीय बोलियां थीं, जिनका लोग बोलचाल में इस्तेमाल करते थे। लेकिन हिंदी, पंजाबी, तमिल, बंगाली जैसी प्रमुख भारतीय भाषाओं के मानकीकरण के कारण आज अधिकांश क्षेत्रीय बोलियां और मातृभाषाएं विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं।”
पंजाब का उदाहरण देते हुए सतनाम सिंह संधू ने कहा, “पंजाब में 28 अलग-अलग बोलियाँ थीं, जिनका अलग-अलग समुदाय बोलते थे। पंजाब में अब सिर्फ़ चार क्षेत्रीय माझी, मालवई, दोआबी और पुआधी बोलियाँ बोली जाती हैं। इन स्थानीय बोलियों में क्षेत्रीय विरासत और संस्कृति की झलक मिलती है। इसलिए, यह ज़रूरी है कि सरकार क्षेत्रीय बोलियों को संरक्षित करने का प्रयास करे; अन्यथा, हम अपना भाषाई इतिहास खो देंगे, जो इन भाषाओं में लिखे गए साहित्य के रूप में है।” सतनाम सिंह संधू ने सरकार से मांग की कि वह भारतीय भाषाओं और बोलियों के शब्दकोश के प्रकाशन, विलुप्त होने के खतरे में पड़ी भारतीय स्थानीय भाषाओं और बोलियों में लिखे गए साहित्य के डिजिटलीकरण और खासकर प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय बोलियों के इस्तेमाल पर काम शुरू करे।
सांसद सतनाम सिंह संधू ने भारत की भाषाई विरासत के महत्व को पहचानने और नई शिक्षा नीति के कार्यान्वयन के माध्यम से भारत की स्थानीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, "यह पहली बार है कि STEM विषयों और तकनीकी शिक्षा के शिक्षण में स्थानीय भारतीय भाषाओं में शिक्षण को प्राथमिकता दी गई है, जिससे छात्रों को सीखने में मदद मिलती है और यह सुनिश्चित होता है कि भाषाई विरासत बनी रहे, क्योंकि छात्र अपनी परिचित भाषा में अवधारणाओं को अधिक आसानी से समझ सकते हैं।"
सांसद सतनाम सिंह संधू ने सिंगापुर और फिलीपींस को ऐसे देशों के उदाहरण के रूप में इस्तेमाल किया, जिन्होंने इस शैक्षिक प्रतिमान को अपनाया है, जहाँ मातृभाषा और स्थानीय भाषाओं में पढ़ाने से छात्रों की सीखने की क्षमता और योग्यता में सुधार हुआ है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि इस मॉडल ने बौद्धिक अक्षमता वाले बच्चों को पढ़ाने में भी अनुकरणीय परिणाम दिखाए हैं।
राज्यसभा सांसद संधू ने अपने वक्तव्य की शुरुआत एनईपी के क्रांतिकारी और परिवर्तनकारी प्रभावों की प्रशंसा से की, जिसमें कम से कम ग्रेड 5 तक और आदर्श रूप से ग्रेड 8 तक शिक्षा की प्राथमिक भाषा के रूप में मातृभाषा या स्थानीय भाषा के के उपयोग को अनिवार्य करता है। उन्होंने स्थानीय भाषाओं के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए नई शिक्षा नीति की प्रशंसा की, विशेष रूप से STEM शिक्षा में, और कहा कि 10 राज्यों में 19 संस्थानों ने पहले ही क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम शुरू कर दिए हैं, जिसे उन्होंने एक सकारात्मक कदम के रूप में सराहा।
केके
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