CHD निगम का एमओएच मोटर गैरेज बना कबाड़ का अड्डा, कंडम वाहनों से चंडीगढ़ की सुंदरता पर दाग
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 20 अप्रैल सिटी ब्यूटीफुल की पहचान को धूमिल कर रहे हैं सरकारी विभागों के गले-सड़े वाहन। करोड़ों रुपये की कीमत के यह कंडम वाहन प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के चलते शहर की सुंदरता पर बदनुमा धब्बा बनते जा रहे हैं। इन वाहनों ने न केवल सरकारी परिसरों की पार्किंग पर कब्जा कर लिया है, बल्कि प्रशासन के राजस्व को भी करोड़ों का नुकसान पहुंचा रहे हैं।
एमओएच मोटर गैरेज, इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1 और एमआरएफ (मटीरियल रिकवरी फैसिलिटी) कम गारबेज ट्रांसफर स्टेशन कबाड़ का बड़ा इंपिंग ग्राउंड बन चुका है। यहां वर्षों से सड़ रहे डस्टबिन, ट्रैक्टर ट्रॉलियां, टो वैन, पानी के टैंकर और अन्य वाहन अब कबाड़ से मिट्टी बनने की कगार पर हैं। स्थिति इतनी खराब है कि यहां गले हुए डस्टबिनों का पहाड़ बन चुका है।
प्रशासनिक उपेक्षा और लटकती फाइलें
इन वाहनों की नीलामी वर्षों से नहीं हो रही। 2013 में स्क्रैप की नीलामी के आदेश हुए थे, लेकिन अधिकारियों के ट्रांसफर और स्क्रैप रेट कम होने की वजह से मामला अटक गया। 2020 में कुछ नीलामी हुई, मगर अधिकांश कबाड़ जस का तस पड़ा है। एक कर्मचारी ने बताया कि स्क्रैप की नीलामी तभी होती है जब ऊपर से आदेश आता है, वरना सब ऐसे ही सड़ता रहता है।
पार्किंग में जगह नहीं, गाड़ियों की कब्रगाह बनी सरकारी प्रॉपर्टी
चंडीगढ़ में जहां पहले से ही पार्किंग एक बड़ी समस्या है, वहीं यह कंडम वाहन आम लोगों की परेशानी बढ़ा रहे हैं। नगर निगम और अन्य सरकारी विभागों के मुख्यालयों की पार्किंग पर इन वाहनों का कब्जा है। अधिकारी अपने लिए नए वाहन तो खरीद लेते हैं, लेकिन पुराने को नीलाम करवाने की जिम्मेदारी नहीं निभाते। इससे न केवल जगह की किल्लत बढ़ती है, बल्कि सुरक्षा गार्ड और स्टाफ को इनकी रखवाली में तैनात करना पड़ता है।
रिहायशी इलाकों में भी पसरा कबाड़
नगर निगम के अंतर्गत आने वाले कई रिहायशी इलाकों की पार्कों और सार्वजनिक स्थलों में भी वर्षों से जर्जर गाड़ियां खड़ी हैं। खासतौर पर सेक्टर 27 बी का बिजली सब स्टेशन और अन्य क्षेत्रों में इन कंडम वाहनों ने कबाड़खाने की शक्ल ले ली है। इन पर कोई विभाग ध्यान नहीं दे रहा, जबकि दूसरी ओर शहर में वाहन पार्किंग को लेकर आए दिन झगड़े हो रहे हैं।
प्रशासन की चुप्पी सवालों के घेरे में
सरकारी संपत्ति का इस तरह सड़ना, नीलामी में देरी और अधिकारियों की बेरुखी सीधे तौर पर प्रशासनिक अकर्मण्यता को उजागर करती है। करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति कबाड़ में तब्दील हो रही है और इसका असर शहर की व्यवस्था, सौंदर्य और आम नागरिकों की सुविधा पर साफ देखा जा सकता है।
अब सवाल यह है कि प्रशासन कब जागेगा? क्या सरकारी संपत्ति को यूं ही मिट्टी बनने दिया जाएगा?
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