चंडीगढ़ नगर निगम बना 'प्राइवेट लिमिटेड कंपनी', जनता पर महंगाई का कहर—जनता बोली: सब्र का बांध अब टूट चुका!
विकास कार्य ठप, टैक्स में बेतहाशा बढ़ोतरी, मेयर व पार्षदों की अनदेखी—चंडीगढ़ प्रशासन पर उठने लगे सवाल
रमेश गोयत
चंडीगढ़,18 अप्रैल। कभी ‘सिटी ब्यूटीफुल’ कहे जाने वाला चंडीगढ़ आज एक कल्याणकारी राज्य नहीं, बल्कि मुनाफाखोर संस्था जैसा व्यवहार करने वाला शहर बन चुका है। वित्तीय संकट की दुहाई देकर नगर निगम और यूटी प्रशासन जनता पर निरंतर टैक्स और शुल्कों की मार बरसा रहे हैं। ऐसा लग रहा है मानो नगर निगम अब एक 'प्राइवेट लिमिटेड कंपनी' की तरह चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य लाभ कमाना है, न कि नागरिकों की सेवा।
नगर निगम बना मुनाफे का केंद्र, जनता पर डाला जा रहा आर्थिक बोझ
पिछले कुछ महीनों में नगर निगम और प्रशासन ने पानी, बिजली, कचरा प्रबंधन, प्रॉपर्टी टैक्स, कलेक्टर रेट और संपर्क शुल्क तक में भारी बढ़ोतरी कर दी है। विकास कार्य ठप पड़े हैं, सड़कों की मरम्मत और पार्कों की देखरेख नाममात्र की हो रही है, लेकिन टैक्स का दबाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। वित्तीय संकट के नाम पर आउटसोर्स कर्मचारी को निकाला जा रहा है। पिछले दिनों फायर ब्रिगेड से सैकड़ो का करीब कर्मचारियों को बाहर निकाल दिया। वहीं बाहर से डेपुटेशन पर आने वाले अधिकारी भी नगर निगम में अब नौकरी करना पसंद नहीं कर रहे। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार सैकड़ो के करीब निगम कर्मचारी मोहाली व चंडीगढ़ में पॉलीटिशियन व आईएएस अधिकारियों के कोठियों पर सेवा दे रहे हैं। उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं, वेतन निगम का सेवा प्राइवेट। ऑनलाइन अटेंडेंस का कार्य भी बीच में ही पेंडिंग है। इस मामले में अभी तक किसी भी अधिकारी व मेयर ने इन कर्मचारियों को ही फिजिकल वेरिफिकेशन चेक नहीं की है। मेयर से लेकर पार्षद तक सभी आम जनता में बैठकर कहते हैं कि सैकड़ो कर्मचारी निगम से बाहर सेवा दे रहे हैं। मगर अगवानी होकर चेकिंग की कोई बात नहीं कर रहा। जो की जांच का विषय है। जिसके कारण आम शहर की जनता ने निगम को एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का नाम कह कर पुकारा शुरू कर दिया है । यह रोजाना आम सोशल मीडिया में कई ग्रुप में चल रहा है।
60,000 रुपये में कम्युनिटी सेंटर किराए पर देने जैसे फैसले, होटल बुक करने से भी ज्यादा महंगे साबित हो रहे हैं। शहर के नागरिकों का कहना है कि प्रशासन और निगम ने मानो दुकान खोल ली है—जहाँ लाभ-हानि देखकर निर्णय लिए जा रहे हैं।
पार्षदों की आवाज दबाई जा रही, मेयर भी बेअसर
चंडीगढ़ नगर निगम हाउस की शक्ति भी लगातार कमजोर होती जा रही है। पार्षदों की कोई सुनवाई नहीं हो रही, और हाउस का संचालन पूरी तरह प्रशासन के नियंत्रण में है। मेयर तक की भूमिका सीमित हो गई है। इस्तीफे की धमकी देने वाले पार्षदों पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह सिर्फ प्रशासन पर दबाव बनाने का 'ड्रामा' है या फिर वास्तव में जनता की आवाज बनने की कोशिश।
वित्तीय संकट के नाम पर मनमर्जी
चंडीगढ़ नगर निगम को वित्तीय संकट से उबारने की दुहाई देकर आम जनता की जेब पर भार डाला जा रहा है। पानी, बिजली, प्रॉपर्टी टैक्स और गार्बेज चार्ज कई गुना बढ़ाए जा चुके हैं। संपर्क शुल्क तक में बेतहाशा वृद्धि कर दी गई है, जिससे शहरवासी परेशान हैं। वहीं विकास कार्य लगभग ठप हो चुके हैं। पार्कों की हालत बदतर है और सड़कों की मरम्मत भी ठंडे बस्ते में है।
निगम में लोकतंत्र की कमी, पार्षदों की हो रही अनदेखी
नगर निगम के हाउस का संचालन भी अब प्रशासन के इशारों पर होता दिख रहा है। मेयर से लेकर पार्षद तक की आवाजें दबाई जा रही हैं। विपक्ष और सत्ता पक्ष के पार्षद आपस में छींटाकशी कर रहे हैं, जबकि जनता की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। पार्षदों द्वारा इस्तीफा देने की धमकियां केवल ‘दबाव की राजनीति’ का हिस्सा बनकर रह गई हैं।
रोजगार पर असर, जनता का सब्र टूटा
प्रशासन की नीतियों का सीधा असर शहर के छोटे व्यापारियों और मजदूरों पर पड़ा है। रोजगार के अवसर घटे हैं और आर्थिक दबाव ने कई परिवारों की कमर तोड़ दी है। जनता अब खुलकर विरोध कर रही है। उनका कहना है कि सब्र की भी एक सीमा होती है, जो अब पार हो चुकी है।
पुरानी ज्यादतियों से सबक नहीं लिया प्रशासन ने
शहर के प्रबुद्ध नागरिक आर के गर्ग ने बताया कि यह पहली बार नहीं जब प्रशासन ने मनमानी की है। वर्ष 2017 में जब लीजहोल्ड से फ्रीहोल्ड में कन्वर्जन दरें अचानक कई गुना बढ़ाई गई थीं, तब भी विरोध हुआ था लेकिन असर नहीं पड़ा। अब फिर उसी तरह के फैसले लिए जा रहे हैं।
क्या सुझाव हैं जनता और सामाजिक कार्यकर्ताओं के?
फ्रीहोल्ड दरें कलेक्टर रेट के अनुसार तय हों।
कलेक्टर रेट चंडीगढ़ के साथ लगते शहरों की दरों के अनुरूप हों।
पानी, बिजली और गार्बेज शुल्क पर व्यापक चर्चा के बाद पुनर्विचार हो।
नगर निगम को व्यावसायिक नहीं, जनसेवी संस्था की तरह चलाया जाए।
जनता में रोष, बोझ उठाना मुश्किल: कृष्ण लाल बवेजा, सुभाष व रामलाल
शहरवासियों रामकुमार गर्ग, कृष्ण लाल बवेजा, सुभाष और रामलाल ने कहा कि प्रशासन ने जनता को मुनाफे का साधन समझ लिया है। हर महीने कोई न कोई नया टैक्स या शुल्क बढ़ा दिया जाता है। "हमने कभी नहीं सोचा था कि चंडीगढ़ जैसे सुव्यवस्थित शहर में भी प्रशासन जनता की सुनना बंद कर देगा। अब तो हाल यह है कि बिजली-पानी के बिल भरने के बाद घर चलाना मुश्किल हो गया है," रामकुमार ने कहा। सुभाष और रामलाल ने मांग की कि प्रशासन को सभी फैसलों पर सामाजिक कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों से विमर्श के बाद ही निर्णय लेना चाहिए।
जनता का फूटा गुस्सा: ‘हम कोई प्रयोगशाला नहीं हैं’
स्थानीय निवासी रामकुमार गर्ग, सुभाष और कृष्ण लाल ने गुस्से में कहा कि "प्रशासन ने चंडीगढ़ को एक व्यापारिक मॉडल बना दिया है। हम नागरिक नहीं, ग्राहक बन चुके हैं। हर महीने कोई नया टैक्स थोप दिया जाता है। अगर यही चलना है, तो प्रशासन को यह बताना चाहिए कि हर परिवार को कितना पैसा देना है ताकि हम हिसाब से घर चलाएं।"
उन्होंने कहा, "एक तरफ प्रशासन कहता है कि फंड की कमी है, दूसरी तरफ अंधाधुंध खर्चे हो रहे हैं। निगम को खुद का खर्च नहीं चलाना आ रहा तो यह जिम्मेदारी जनता पर क्यों डाली जा रही है?"
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