फर्जी दस्तावेजों से शराब का ठेका, 6 करोड़ का नुकसान: चंडीगढ़ एक्साइज विभाग की कार्यप्रणाली पर उठे सवाल
चहेते अधिकारियों की पोस्टिंग के कारण आबकारी विभाग पर उठ रही उंगलियां
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 07 अप्रैल। शराब कारोबार से जुड़ा एक बड़ा घोटाला चंडीगढ़ में सामने आया है, जिसमें आबकारी एवं कराधान विभाग (Excise & Taxation Department) को फर्जी दस्तावेजों के जरिये ठेका हासिल कर 6 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान पहुंचाया गया है। इस मामले का खुलासा खुद विभाग के कलेक्टर ने अपनी रिपोर्ट में किया है, जिसमें विभागीय प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही और संभावित साठगांठ की बात कही गई है। चंडीगढ़ प्रशासन में मलाईदार पदों पर अपने चहेते अधिकारियों की पोस्टिंग ने आबकारी विभाग का स्वरूप ही बदल दिया। जिसे कारण पिछले 1 साल से जीएसटी के मामले में भारी गिरावट आई है,, जो ऑडिट विभाग की रिपोर्ट में दर्ज है।
क्या है मामला?
पिछले साल हुई शराब ठेकों की ई-नीलामी के दौरान चंडीगढ़ के सेक्टर 37-डी स्थित शराब के ठेके की बोली पंजाब के होशियारपुर जिले के रामपुर, झंझोवाल व मेहंडोवाल कला निवासी गुरिंदर सिंह और उनके भाई जुझार सिंह ने लगाई थी।
इन्होंने “गुरिंदर सिंह एंड ब्रदर्स” के नाम से ठेका हासिल किया और विभाग को 6 करोड़ 51 लाख 2 हजार 307 रुपए की बोली दी।
बोली लगाते समय फर्म ने जो दस्तावेज जमा करवाए थे, उनमें फाइनेंशियल स्टेटमेंट, आयकर रिटर्न व अन्य आवश्यक प्रमाणपत्र शामिल थे। लेकिन जांच में सामने आया कि ये दस्तावेज फर्जी थे और विभाग ने बिना सत्यापन के इन्हें स्वीकार कर लिया।
विभाग को हुआ करोड़ों का नुकसान
ठेका मिलने के बाद फर्म ने समय पर भुगतान नहीं किया और कई शर्तों का उल्लंघन किया। इसके चलते विभाग को 6 करोड़ रुपए से ज्यादा की राजस्व हानि हुई है। कलेक्टर की रिपोर्ट में इस बात की ओर इशारा किया गया है कि यह फर्जीवाड़ा केवल ठेकेदारों की चालाकी नहीं, बल्कि विभाग के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत या लापरवाही का नतीजा भी हो सकता है।
जांच और कार्रवाई की मांग
मामले की गंभीरता को देखते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की जा रही है। विभागीय स्तर पर प्राथमिक जांच शुरू की जा चुकी है, और एक स्वतंत्र जांच कमेटी या SIT गठित करने की सिफारिश भी की जा रही है।
आबकारी विभाग में अफसरशाही फेरबदल से बढ़ी मुश्किलें
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पहले चंडीगढ़ में आबकारी कराधान आयुक्त की जिम्मेदारी जिला उपायुक्त (DC) जैसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के पास होती थी।
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लेकिन पिछले वर्ष यह जिम्मेदारी यूटी कैडर के एक जूनियर अधिकारी को सौंप दी गई।
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ठेकेदारों और अधिकारियों के बीच संवाद और निर्णयों में अब देरी और अस्पष्टता देखी जा रही है।
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इससे न केवल विभागीय प्रक्रिया प्रभावित हुई है, बल्कि हर साल करोड़ों रुपए के राजस्व नुकसान की आशंका भी जताई जा रही है।
ठेकेदारों का आरोप: चहेते अधिकारियों को ही मलाईदार सीटों पर नियुक्ति
“पहले अधिकारी सीधे बात सुनते थे, अब फाइलें लटकती हैं और फैसले में महीनों लग जाते हैं।” पिछले एक साल से सैकड़ों फाइल पेंडिंग पड़ी है, कोई सुनवाई नही हो रही, आबकारी कलेक्टर व एईटीसी का पद भी आबकारी विभाग के सीनियर व तजुर्बे वाले अधिकारी को देना चाहिए। मगर यह पिछले काफी समय से चंडीगढ़ में नहीं हो रहा है आला अधिकारी अपने चहेते अधिकारियों को ही मलाईदार सीट पर नियुक्ति कर रहे हैं। पदों पर नियुक्ति करते समय कोई भी जूनियर सीनियर का सिस्टम नहीं देखा जा रहा है। पीसीएस और एचसीएस अधिकारियों को भी उनके रुतबे के अनुसार जिम्मेवारियां नहीं दी जा रही है।
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