पुलिस वीडियो कॉल से नहीं करती गिरफ्तारी, ‘डिजिटल अरेस्ट’ महज एक साइबर जाल: डीसीपी हिमाद्री कौशिक ने दी चेतावनी
रमेश गोयत
पंचकूला, 7 अप्रैल। साइबर अपराधियों ने अब ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर एक नया फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया है, जिससे आम लोग डरकर भारी रकम गवां रहे हैं। इस खतरनाक स्कैम को लेकर डीसीपी पंचकूला हिमाद्री कौशिक ने नागरिकों को सतर्क रहने की अपील की है। उन्होंने स्पष्ट किया कि पुलिस कभी भी वीडियो कॉल या व्हाट्सएप जैसे माध्यमों से गिरफ्तारी नहीं करती।
डीसीपी कौशिक के अनुसार, साइबर ठग खुद को पुलिस, सीबीआई, नारकोटिक्स या आरबीआई का अधिकारी बताकर वीडियो कॉल पर लोगों को डराते हैं। कॉल में वर्दीधारी व्यक्ति, नकली बैकग्राउंड और कानूनी भाषा का प्रयोग कर सामने वाले को यकीन दिलाया जाता है कि वह किसी बड़े अपराध में फंसा है। इसके बाद ठग उन्हें ऑनलाइन पैसे ट्रांसफर करने के लिए मजबूर करते हैं।
“डिजिटल अरेस्ट नाम की कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है। यह पूरी तरह से फर्जीवाड़ा है,” डीसीपी ने कहा। उन्होंने बताया कि कोई भी सरकारी एजेंसी न तो वीडियो कॉल पर पहचान साबित करती है, न ही किसी ऐप को डाउनलोड करने या पैसे भेजने की मांग करती है।
पुलिस ने बताया कि इस प्रकार के ठग WhatsApp, Skype जैसे माध्यमों का प्रयोग करते हैं, जो कि किसी भी सरकारी संवाद के लिए अधिकृत नहीं हैं। नागरिकों से आग्रह किया गया है कि वे ऐसे कॉल या ईमेल को नजरअंदाज करें, किसी अनजान लिंक पर क्लिक न करें, और कोई भी निजी या बैंकिंग जानकारी साझा न करें।
CERT-IN (भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम) और पंचकूला पुलिस की एडवाइजरी के अनुसार:
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ऐसे कॉल/ईमेल का स्क्रीनशॉट व रिकॉर्डिंग रखें
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तुरंत साइबर हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल करें
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या www.cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें
डीसीपी कौशिक ने कहा, “डिजिटल जागरूकता ही साइबर सुरक्षा है।” उन्होंने नागरिकों से पंचकूला पुलिस द्वारा चलाए जा रहे जागरूकता कार्यक्रमों में भाग लेने का भी आह्वान किया।
याद रखें: डिजिटल अरेस्ट एक धोखा है — सतर्क रहें, सुरक्षित रहें।
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