केंद्रीय सदन सेक्टर 9 की 6वीं मंजिल पर मरम्मत कार्य में गड़बड़ी: टेंडर शर्तें बदलीं, जांच की मांग तेज!
सीपीडब्ल्यूडी व विभाग के अधिकारियों पर लापरवाही के आरोप, एक साल बाद भी अधूरा काम
90 दिन बाद भी नहीं पूरा हुआ सीपीडब्ल्यूडी का टेंडर कार्य, अधिकारी-कर्मचारी परेशान | ठेकेदार और अधिकारियों की साठगांठ का आरोप
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 07 अप्रैल सेक्टर 9-ए स्थित केंद्रीय सदन चंडीगढ़ की 6वीं मंजिल पर मार्केटिंग एंड इंस्पेक्शन निदेशालय के कार्यालय की मरम्मत का कार्य सीपीडब्ल्यूडी द्वारा किए जाने के बावजूद एक वर्ष बीतने के बाद भी अधूरा है। यह रिनोवेशन का कार्य मार्च 2024 में शुरू हुआ था खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। जो कि यह कार्य 90 दिनों में पूरा किया जाना था, लेकिन टेंडर की शर्तों में बदलाव कर न केवल प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ किया गया बल्कि सरकारी नियमों का उल्लंघन भी किया गया।
यह कार्य सीपीडब्ल्यूडी (CPWD) की चंडीगढ़ सेंट्रल डिवीजन-1 द्वारा करवाया जा रहा है। कुल लागत करीब 43 लाख रुपये है, जिसमें सिविल कार्य के लिए 36.42 लाख और इलेक्ट्रिकल कार्य के लिए 6.70 लाख रुपये का प्रावधान है। मार्च 2024 निविदा के मुताबिक कार्य की समय-सीमा 90 दिन तय की गई थी, जो साइट मिलने के दिन से मानी जाती है।
लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि 90 दिन बीतने के बाद भी कार्य अधूरा पड़ा है। सूत्रों का दावा है कि ठेकेदार और सीपीडब्ल्यूडी के कुछ अधिकारियों के बीच मिलीभगत के चलते जानबूझकर कार्य को लटकाया जा रहा है। इससे न केवल सरकारी धन का दुरुपयोग हो रहा है, बल्कि सरकारी कार्य संस्कृति पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
‘सत्यमेव जयते’ लिखने भर से सत्य नहीं छिपता
CPWD की वेबसाइट और दफ्तरों में बड़े-बड़े अक्षरों में ‘सत्यमेव जयते’ लिखा गया है, लेकिन जमीन पर हकीकत इसके ठीक उलट नजर आ रही है। अधिकारियों की चुप्पी और ठेकेदार की लापरवाही ने विभागीय कामकाज को बाधित कर दिया है।
सूत्रों के अनुसार, सीपीडब्ल्यूडी के इंजीनियर और ठेकेदार की मिलीभगत से कार्य की मूल शर्तों को बदल दिया गया, जो स्पष्ट रूप से नियमों के खिलाफ है। इस पूरे प्रकरण में विजिलेंस या सीबीआई जांच की मांग उठाई जा रही है।
जिम्मेदारी से बचने की कोशिश
सीपीडब्ल्यूडी विंग के एसडीओ राजेश वरुण कार्य में देरी का ठीकरा इलेक्ट्रिकल विंग पर फोड़ रहे हैं। वहीं, इलेक्ट्रिकल विंग के एसडीओ योगेश का कहना है कि,
“हमने अपना कार्य समय पर पूरा कर दिया है। सिर्फ एसी लगाने का कार्य बचा है, जिसे जल्द पूरा किया जाएगा।”
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राजेश वरुण ने कहा:
“ज़रूरी नहीं कि टेंडर के अनुसार कार्य 90 दिन में पूरा हो। यह तकनीकी काम है, समय तो लगता है। विभाग को कोई आपत्ति नहीं है, हम काम पूरा करवा लेंगे।”
लेकिन विभागीय अधिकारी और कर्मचारी इससे सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि लापरवाही का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है।
“एक साल से धूल-मिट्टी में बैठ रहे हैं, बीमार हो रहे हैं। बैठने तक की व्यवस्था नहीं है। सीपीडब्ल्यूडी की लापरवाही से कार्यलय का माहौल खराब हो गया है। नियमानुसार कार्य नहीं हो रहा। मामले की जांच होनी चाहिए।”
क्या कहते हैं नियम?
CPWD के टेंडर डॉक्युमेंट्स के अनुसार, कार्य स्थल उपलब्ध होने की तिथि से 90 दिन में कार्य पूरा होना अनिवार्य है। शर्तों का उल्लंघन अनुबंध की अवहेलना माना जाता है, जिस पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
अब सवाल यह है:
किसके इशारे पर टेंडर की शर्तों में बदलाव हुआ?
अगर काम टेक्निकल था, तो इसकी समय-सीमा बढ़ाने के लिए संशोधित आदेश क्यों नहीं जारी किए गए?
एक साल में भी कार्य न होना क्या लापरवाही और भ्रष्टाचार का संकेत नहीं?
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