बिना परामर्श के बढ़ाया गया संपत्ति कर, विरोध के बाद प्रशासन ने दबाव में दी आंशिक राहत – लोकतंत्र की अनदेखी पर सेकंड इनिंग एसोसिएशन ने जताई कड़ी आपत्ति
न कोई प्रस्ताव, न नोटिस, न बैठक : आरके गर्ग
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 24 अप्रैल –चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा हाल ही में संपत्ति कर में की गई तीन गुना बढ़ोतरी एक बड़े विवाद का कारण बन गई है। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यह फैसला न तो किसी आमजन की मांग पर लिया गया था, न ही किसी निर्वाचित प्रतिनिधि या नगर निगम (एमसी) के प्रस्ताव पर आधारित था। प्रशासन ने यह निर्णय अपने स्तर पर, बिना किसी सार्वजनिक परामर्श या अधिसूचना के लागू कर दिया, जिससे नागरिकों में व्यापक असंतोष फैल गया।
इस निर्णय के खिलाफ सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने खुलकर विरोध दर्ज कराया, जिसमें कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और स्थानीय नागरिक संगठनों ने मोर्चा खोल दिया। तीव्र विरोध और जन दबाव के चलते अंततः प्रशासक को इस कर वृद्धि में थोड़ी राहत देने का निर्णय लेना पड़ा — लेकिन यह फैसला भी उतनी ही जल्दबाजी और असंवैधानिक तरीके से लिया गया जितना कि कर वृद्धि का निर्णय।
नगर निगम हाउस की अनदेखी: लोकतंत्र को ठेस
विशेषज्ञों और जन प्रतिनिधियों का मानना है कि प्रशासक द्वारा एमसी हाउस को नजरअंदाज कर सीधे ऐसे महत्वपूर्ण वित्तीय निर्णय लेना लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अवहेलना है। स्थानीय निकायों को संवैधानिक रूप से स्वायत्त माना गया है, और उनकी भागीदारी के बिना इस तरह का निर्णय लेना सीधे तौर पर नागरिक अधिकारों और प्रतिनिधित्व की भावना को कमजोर करता है।
इस पूरी प्रक्रिया की सेकंड इनिंग एसोसिएशन ने कड़ी आलोचना की है। संगठन के अध्यक्ष आर.के. गर्ग ने बयान जारी करते हुए कहा: कि"एक निर्वाचित प्रतिनिधि के रूप में नगर निगम सदन की उपेक्षा करना बेहद चिंताजनक और अस्वीकार्य है। न कोई प्रस्ताव, न नोटिस, न बैठक — यह सब कुछ लोकतंत्र के विपरीत हुआ है। प्रशासन द्वारा बार-बार इस तरह की तानाशाही रवैया अपनाना लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा बन सकता है।"
बिना सार्वजनिक संवाद के नीति परिवर्तन: नागरिकों में नाराज़गी
संपत्ति कर जैसे संवेदनशील विषय पर आम जनता की राय लिए बिना अचानक तीन गुना कर वृद्धि करना न केवल जनता के साथ अन्याय है, बल्कि यह प्रशासन और नागरिकों के बीच भरोसे की दीवार को भी कमजोर करता है। महामारी और महंगाई के इस दौर में आम आदमी पहले ही आर्थिक दबाव से जूझ रहा है, ऐसे में यह कर वृद्धि उनके लिए एक अतिरिक्त बोझ साबित हुई।
क्या यह केवल शुरुआत है?
स्थानीय नागरिक संगठन और विपक्षी दल आशंका जता रहे हैं कि यदि अभी विरोध नहीं किया गया, तो भविष्य में प्रशासन इसी तरह अन्य शुल्क और करों में भी एकतरफा निर्णय ले सकता है। दूसरी पारी एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि वे ऐसे हर कदम का विरोध करेंगे जो जन भागीदारी और पारदर्शिता को दरकिनार कर, केवल ‘हुकूमत के निर्देश’ पर आधारित होगा।
जनता की मांग: पारदर्शिता और जवाबदेही
अब मांग उठ रही है कि इस प्रकार के सभी निर्णयों को पारदर्शी, प्रतिनिधिक और प्रक्रियागत बनाया जाए। स्थानीय निकायों को उनके अधिकारों के अनुसार निर्णायक भूमिका दी जाए, और प्रशासक को केवल पर्यवेक्षक की भूमिका तक सीमित किया जाए।
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