चंडीगढ़: सरकारी जमीन पर अतिक्रमण का बढ़ता संकट, प्रशासन की विफलताएं उजागर, माली हट की परमिशन नहीं बन रहे फार्म हाउस
खेतों से लेकर शहरी इलाकों तक, हर जगह अवैध कॉलोनियों, फॉर्म हाउस और सरकारी जमीन पर कब्जे
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 17 जनवरी 2025 - चंडीगढ़ प्रशासन के पास अपनी भूमि का सटीक लेखा-जोखा नहीं होने के कारण शहर की कीमती सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा तेजी से बढ़ रहा है। खेतों से लेकर शहरी इलाकों तक, हर जगह अवैध कॉलोनियों, फॉर्म हाउस और धार्मिक संरचनाओं ने सरकारी जमीन को अपने कब्जे में ले लिया है।
अवैध कॉलोनियों का फैलाव
इंडस्ट्रियल एरिया की संजय कॉलोनी और सेक्टर 25 की जनता कॉलोनी जैसे क्षेत्र अतिक्रमण का बड़ा उदाहरण हैं। संजय कॉलोनी में करीब 3,000 झुग्गियां और जनता कॉलोनी में 2,500 झुग्गियां हैं, जहां 10,000 से अधिक लोग अवैध रूप से रह रहे हैं। इन दोनों इलाकों में 30 एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा है। यह जमीन स्कूल, डिस्पेंसरी और सामुदायिक केंद्र जैसी सार्वजनिक सुविधाओं के लिए आरक्षित थी।
जनता कॉलोनी, 1 मई 2022 को कॉलोनी नंबर 4 के विध्वंस के बाद, चंडीगढ़ का सबसे बड़ा स्लम क्षेत्र बन चुकी है। जमीन की अनुमानित कीमत 500 करोड़ रुपये है, लेकिन प्रशासन इसे खाली कराने में असफल रहा है।
जिस विभाग की जमीन उन्हें ही नहीं पता अपनी जमीन का
चंडीगढ़ प्रशासनिक जिस विभाग के लिए जमीन किसानों से एक्वायर की थी मगर उसे विभाग को ही इस जमीन के बारे में कोई रिकॉर्ड आता पता नहीं है। ना ही उनके पास फाइल है। उस विभाग के अधिकारियों का कहना है कि रेवेन्यू विभाग हमें बताएं कि हमारी जमीन कहां पर है। यह कारण सबसे बड़ा डेपुटेशन पर आए अधिकारियों के कारण चल रहा है। 3 साल के बाद अधिकारी अपने मूल काडर में चले जाते है। आने वाला अधिकारी इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है। जिसके कारण सरकारी जमीन पर अवैध गौरख धंधे चल रहे हैं। यहां तक भी लोगों ने सरकारी जमीन को रेहडी फ़ड़ी व दूसरे कामों के लिए किराए पर दिया हुआ है।
धड़ल्ले से बना रहे नेताओं में अधिकारियों के फार्म हाउस
चंडीगढ़ में रोजाना कृषि भूमि पर धड़ल्ले से नेताओं और अधिकारियों के फार्म हाउस बना रहे हैं। यह सब फार्म हाउस अधिकारियों की ही देखरेख में बना रहे हैं, कोई भी इन अवैध फार्म हाउस इस को रोकने वाला नहीं है नियमानुसार कृषि भूमि पर माली हट भी बनाने के लिए प्रशासन से परमिशन लेनी पड़ती है। मगर इन फार्म हाउस की परमिशन कौन दे रहा है यह भी जांच का विषय है। पिछले दिनों रायपुर खुर्द में एक बहुत बड़ा अवैध होटल को गिराया था। मगर प्रशासन के सामने इस होटल के पास में कृषि भूमि पर बड़े-बड़े शोरूम बना रहे हैं उनकी तरफ प्रशासन के अधिकारियों की कोई भी नजर नहीं पड़ी।
धार्मिक संरचनाओं का अतिक्रमण
शहर में कम से कम 40 अवैध धार्मिक ढांचे हैं, जो करीब 16 एकड़ भूमि पर फैले हुए हैं। ये मुख्य रूप से कैबवाला, मौली जागरा, मलोया और राम दरबार जैसे क्षेत्रों में स्थित हैं। हालांकि, प्रशासन ने इन मामलों पर कानूनी कार्रवाई की है, लेकिन अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकला।
फर्नीचर मार्केट: पुराने कब्जे की नई कोशिश
सेक्टर 53/54 में स्थित अवैध फर्नीचर मार्केट पर 1985 से कब्जा है। प्रशासन ने हाल ही में इन व्यापारियों को बेदखली का नोटिस दिया है और इस क्षेत्र को दो सप्ताह के भीतर खाली कराने की योजना है।
प्रशासनिक लापरवाही और असफल योजनाएं
2024 में तत्कालीन उपायुक्त विनय प्रताप सिंह ने अतिक्रमण रोकने के लिए जियो-मैपिंग योजना की घोषणा की थी। लेकिन यह योजना केवल कागजों तक ही सीमित रही। छह महीने बाद भी जमीनी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
चंडीगढ़ नगर निगम ने 23 गांवों में 68 एकड़ अतिक्रमित भूमि की पहचान की है, लेकिन इनमें से अधिकांश मामले अदालतों में लंबित हैं।
कर्मचारियों की कमी बनी बाधा
यूटी प्रशासन के भूमि अधिग्रहण विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी है। 10 पटवारियों की जरूरत के मुकाबले, केवल 2 पटवारी कार्यरत हैं। इनमें से एक अदालती मामलों में व्यस्त रहता है। इस कारण, अतिक्रमण की जांच और कार्रवाई की प्रक्रिया बहुत धीमी हो गई है।
उपायुक्त का दृढ़ संकल्प
नए उपायुक्त निशांत यादव ने सरकारी जमीन को अतिक्रमण मुक्त करने का प्रण लिया है। उन्होंने कहा कि "चंडीगढ़ जैसे नियोजित शहर में जमीन का दुरुपयोग गंभीर चिंता का विषय है। इससे न केवल शहरी विकास प्रभावित होता है, बल्कि सरकार को वित्तीय नुकसान भी होता है।"
क्या उम्मीद करें?
शहर की बढ़ती आबादी और प्रशासनिक अनदेखी ने अतिक्रमण की समस्या को विकराल बना दिया है। सरकारी योजनाएं और प्रशासनिक उदासीनता इस संकट को और बढ़ा रही हैं। चंडीगढ़ के नागरिक अब उम्मीद कर रहे हैं कि प्रशासन जल्द ही सख्त कदम उठाएगा और "सिटी ब्यूटीफुल" की खोई हुई पहचान को वापस लाएगा।
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