यहां स्थापित हैं भगवान श्री राम के हाथों से बनी मूर्तियां, कुल्लू के रघुनाथपुर में विराजमान हैं श्री रघुनाथ
अंतर्राष्ट्रीय दशहरा महोत्सव में अधिष्ठाता देवता के रूप में शिरकत करते हैं रघुनाथ महाराज
शशिभूषण पुरोहित
07 अक्तूबर, 2024
कुल्लू : अयोध्या स्थित भगवान श्री रामलला के प्रति भक्तों की अगाध श्रद्धा जैसा ही एक मंदिर हिमाचल प्रदेश में भी है, जहां स्थापित मूर्तियां त्रेता युग में भगवान श्री राम के हाथों से बनाई गई हैं। जी हां! ये ऐतिहासिक मूर्ति स्थापित है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला मुख्यालय के रघुनाथपुर में।
हिमाचल में श्री राम कई लोगों के आराध्य देव माने जाते हैं। प्रदेश के कई मंदिरों का सीधा संबंध राम जन्म भूमि अयोध्या से है। एक ऐसा ही मंदिर हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित है। यह मंदिर कुल्लू जिले के आराध्य देव भगवान रघुनाथ के नाम से प्रसिद्ध है, जिसका सीधा संबंध श्री राम और अयोध्या से जुड़ा हुआ है। कुल्लू के रघुनाथपुर में भगवान रघुनाथ का मंदिर स्थित है।
मंदिर का श्री राम से संबंध :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रघुनाथ जी की मूर्ति को अयोध्या से लाया गया है। कहा जाता है कि भगवान रघुनाथ की मूर्ति को स्वयं श्री राम ने बनाया है। भगवान रघुनाथ की मूर्ति को अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से लाया गया है। भगवान रघुनाथ को श्री राम का ही एक रूप माना जाता है। भगवान रघुनाथ कुल्लू के प्रमुख देवता हैं।
17वीं सदी में कुल्लू के राजा जगत सिंह के शासन काल (1637 से 1662 ईस्वी) के दौरान हनुमान और माता सीता संग रघुनाथ जी की मूर्ति को कुल्लू लाया गया था। कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के टिप्परी गांव में एक गरीब ब्राह्मण दुर्गा दत्त रहता था। उस समय किसी के द्वारा राजा जगत सिंह को गरीब ब्राह्मण के पास मोती होने की गलत सूचना दी गई। जब राजा ने ब्राह्मण से मोती मांगे तो ब्राह्मण के पास कोई मोती नहीं थे। जिसके चलते ब्राह्मण ने राजा के डर से अपने परिवार संग आत्मदाह कर लिया। जिसके बाद से राजा जगत सिंह को एक कुष्ठ रोग हो गया।
अयोध्या से कुल्लू कैसे आए रघुनाथ?
जिसके बाद पयोहारी बाबा किशन दास ने राजा जगत सिंह को सलाह दी कि वह अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से रघुनाथ, माता सीता और हनुमान की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित करें और राजा अपना राजपाट भगवान रघुनाथ को सौंप दें। तभी उनको ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल पाएगी। जिसके बाद राजा जगत सिंह द्वारा अयोध्या से मूर्ति लाने के लिए बाबा किशन दास के भक्त दामोदर दास को भेजा। जब दामोदर दास अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से भगवान रघुनाथ, माता सीता और हनुमान की मूर्तियां लेकर लौटे तो राजा ने पूरे विधि विधान से इन मूर्तियों को रघुनाथ मंदिर में स्थापित किया और सारा कामकाज भगवान रघुनाथ को सौंप दिया। तब से लेकर आज तक राज परिवार भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार बनकर उनकी सेवा कर रहे हैं।
भगवान रघुनाथ की यात्रा से होती है दशहरा महोत्सव की शुरुआत :
कुल्लू जिले में हर साल अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जाता है। जिसमें देश-विदेश से लोग शामिल होते हैं। यह दशहरा उत्सव 7 दिन तक चलता है और भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा से दशहरा महोत्सव की शुरुआत होती है। इस रथ यात्रा में जिले भर से सैकड़ों देवी-देवता शामिल होते हैं। भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा की समाप्ति के साथ ही दशहरा उत्सव का भी समापन होता है।
भगवान रघुनाथ की मूर्ति से जुड़ी मान्यता:
भगवान रघुनाथ की मूर्ति कुल्लू में अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर से 1660 ईस्वी में लाई गई थी. मान्यता है कि इस मूर्ति के आने के बाद कुल्लू के राजा को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी। ऐसे में हर साल यहां पर अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव का भी आयोजन किया जाता है। जिसमें जिला कुल्लू के विभिन्न इलाकों से देवी-देवता इस दशहरा उत्सव में शिरकत करते हैं। वहीं, मान्यता है कि भगवान रघुनाथ की यह मूर्ति अश्वमेध यज्ञ के दौरान त्रेता युग में भगवान श्री राम के हाथ से तैयार की गई थी। जिसका राजस्व रिकॉर्ड आज भी अयोध्या में दर्ज है।
भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार एवं पूर्व सांसद महेश्वर सिंह के अनुसार उनका और उनके परिवार का पूरा जीवन भगवान रघुनाथ जी की सेवा के लिए समर्पित है। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों अयोध्या में श्रीरामलला की मूर्ति स्थापना के लिए भी कुल्लू से विशेष भेंट लेकर वह स्वयं गए थे।
भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता है और अयोध्या के राजस्व रिकॉर्ड में भी यह सब दर्ज किया गया है। दशहरा उत्सव की तैयारियां अंतिम चरण में हैं। दशहरा में भगवान रघुनाथ की भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी, जिसमे हजारों की संख्या में लोग शामिल होंगे।