प्यार की एक नाजुक उड़ान
यह एक ठंडी सर्दियों की दोपहर थी। आसमान में धुंध छाई हुई थी, और ठंडी हवा ने पेड़ों की शाखाओं को बेजान कर दिया था। मां घर के दरवाजे पर खड़ी थीं, धूप की उम्मीद में। तभी, एक नाजुक तितली, जो शायद ठंड से जूझ रही थी, हल्के-हल्के अपने पंख फड़फड़ाती हुई उनके सामने आ गई।
मां ने जैसे ही दरवाजा खोला, तितली झिझकते हुए अंदर उड़ आई। उसके पंख कांप रहे थे, और वह कमजोर लग रही थी। तितली सीधा मां के हाथ पर आकर बैठ गई। मां की हथेली की हल्की गर्मी ने तितली को जैसे नई ऊर्जा दी। मां ने उसे बहुत प्यार से देखा और धीरे से कहा, "तुम बहुत ठंडी हो गई हो, मेरी बच्ची।"
तितली जैसे उनकी बात समझ गई हो। उसने धीरे-धीरे अपने पंख फड़फड़ाए, मानो जवाब दे रही हो। मां ने तितली की तरफ देखते हुए उससे बातें करना शुरू कर दिया। उनके शब्दों में ऐसी ममता थी, जैसे वह तितली को सुकून दे रही हों। तितली भी हर बार अपने पंख हिला कर मां की बात का जवाब देती रही।
कुछ समय बाद, पिताजी घर लौटे। तितली ने मां की हथेली से उड़ान भरी और पिताजी के हाथ पर आकर बैठ गई। पिताजी ने मुस्कुराते हुए उसे देखा। उन्होंने भी उसे बड़े प्यार से अपनी हथेली पर रखा। कुछ पल के लिए तितली ने जैसे अपने नाजुक पंखों से उनकी उंगलियों को महसूस किया। फिर वह वापस मां के हाथ पर चली गई।
तितली की यह छोटी-सी उड़ान, मां और पिताजी के बीच, ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी नाजुकता और गर्मजोशी दोनों बांट रही हो। उसके पंखों की हलचल और उसकी मासूमियत ने घर के ठंडे माहौल में एक अद्भुत गर्मजोशी भर दी।
लेकिन धीरे-धीरे तितली की ऊर्जा कमजोर पड़ने लगी। उसके पंख अब पहले की तरह नहीं हिल रहे थे। कुछ देर बाद वह फिर से पिताजी की हथेली पर आकर बैठ गई। इस बार, उसकी नाजुक काया स्थिर हो गई।
मां और पिताजी ने चुपचाप एक-दूसरे को देखा। उनकी आंखों में एक गहरी उदासी थी। तितली का छोटा-सा जीवन समाप्त हो चुका था। लेकिन वह अपनी आखिरी घड़ियों में जो गर्मी और सुकून ढूंढ़ने आई थी, वह उसे यहां मिल चुका था।
हमने उसे घर के बगीचे में एक छोटे से गड्ढे में दफना दिया। तितली के लिए यह हमारी छोटी-सी श्रद्धांजलि थी। वह आई थी, हमारे घर की ठंड को अपनी नाजुकता से पिघलाने। उसका जाना यह सिखा गया कि जीवन में कुछ पल कितने मूल्यवान होते हैं।
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विकास बिश्नोई, युवा लेखक एवं कहानीकार
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