आतिशी ही क्यों बनी दिल्ली की सीएम? क्या सफल हो पाएगा केजरीवाल का इस्तीफे वाला दांव?
शिक्षा कनोजिया
चंडीगढ़, 17 सितंबर,2024ः दिल्ली की सियासत से सामने आई खबर ने सबको हिलाकर रख दिया है। राजधानी को अपनी तीसरी महिला मुख्यमंत्री मिल गई है। आप सुप्रीम और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल शाम को अपना इस्तीफा दे देंगे। जिसके बाद एक हफ्ते में नई कैबिनेट का गठन भी हो जाएगा। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या चुनावों से पहले केजरीवाल द्वारा खेला यह दांव सफल साबित हो भी पाता है या नहीं? इतना ही नहीं पत्नी सुनीता केजरीवाल और अन्य बड़े नेताओं की जगह आतिशी को ही सीएम क्यों चुना गया? इसके पीछे की सियासत आखिर कहती क्या है? आतिशी का सीएम बनना कहीं ना कहीं केजरीवाल के लिए ही फायदेमंद साबित होगा। इसके पीछे कई कारण है।
केजरीवाल और मनीष सिसोदिया की भरोसेमंद: केजरीवाल की तरह आतिशी मनीष सिसोदिया की भी करीबी हैं। उन्होंने सिसोदिया की सलाहकार के रूप में भी काम किया और उनकी गैर-मौजूदगी में शिक्षा मंत्रालय का भी काम संभाला।
धाकड़ महिला नेताः दिल्ली शराब घोटाला केस में जब अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जेल में थे, तब आतिशी ने ही मोर्चा संभाले रखा. इस दौरान आतिशी सरकार के कामकाज से लेकर संगठन तक की जिम्मेवारी बखूबी निभाती रहीं. जब-जब आम आदमी पार्टी पर मुसीबत आई, उन्होंने सामने आकर विरोधियों का मुकाबला किया।
शुरुआत से आप के साथ जुड़ीं रहींः आतिशी अन्ना हज़ारे आंदोलन के समय से केजरीवाल के साथ हैं। महज पांच साल के भीतर उन्होंने अपनी काबलियत से विधायक से मंत्री तक का सफर तय किया। उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गईं। 2020 में उन्होंने कालकाजी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता और विधायक बनीं। इसके बाद दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के जेल जाने के बाद वे शिक्षा मंत्री बन गईं।
सीएम पद की रेस में सौरभ भारद्वाज, गोपाल राय, कैलाश गहलोत और राखी बिड़ला समेत कई नाम थे, जो अब पिछड़ गए हैं। और राजधानी की कमान आतिशी के हाथ में आ गई है। हालांकि वह अरविंद केजरीवाल की बहुत खास हैं और उनकी सलाह के बिना एक कदम भी नहीं चलती है। इतना ही नहीं दिल्ली के लोग भी उन्हे पंसद करते हैं। बहरहाल हरियाणा में इस समय चुनाव होने में महज़ कुछ दिन हीं बाकी हैं। ऐसे में अरविंद केजरीवाल का पूरा ध्यान हरियाणा की राजनीति में हैं। वह तब ही इस तरफ फोकस कर सकते हैं जब दिल्ली की कमान उनके ही किसी भरोसेमंद साथी के हाथ में हो। वहीं 5 महीने बाद दिल्ली में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और केजरीवाल को भाजपा के खिलाफ नीति बनाने में भी आसानी होगी। अब देखना यह होगा कि क्या दिल्ली के लोग आतिशी को भी केजरीवाल जितना प्यार और स्पोर्ट देते हैं या नहीं? क्या आप सुप्रीमो का सीएम बदलो ऑपरेशन सफल होता या नहीं।
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