अभिभावकों को लूटने के लिए सजी दुकानें!
शिक्षा विभाग की अनदेखी, मनमानी फीस वसूली पर प्रशासन मौन
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 11 मार्च। चंडीगढ़ और आसपास में शिक्षा विभाग के नियमों को ताक पर रखकर प्राइवेट स्कूल खुल रहे हैं। शिक्षा विभाग और प्रशासन की ढिलाई के कारण ये स्कूल बिना किसी रोक-टोक के फल-फूल रहे हैं। यह चिंता का विषय है कि प्रशासन ऐसे स्कूलो पर मनमानी फीस वसूली को रोकने में नाकाम साबित हो रहा है।
अभिभावकों की जेब पर डाका
इन स्कूलों में बच्चों के अभिभावकों से मोटी रकम वसूली जा रही है। दाखिले के समय अतिरिक्त शुल्क, वार्षिक शुल्क, स्मार्ट क्लास चार्ज, कंप्यूटर फीस और परीक्षा शुल्क के नाम पर हजारों रुपये ऐंठे जा रहे हैं, जबकि सीबीएसई और शिक्षा विभाग के नियम स्पष्ट रूप से ऐसी वसूली पर रोक लगाते हैं। नियमों के अनुसार, स्कूल केवल नए एडमिशन के समय या कक्षा 1, 6, 9, और 11 में ही एडमिशन चार्ज ले सकते हैं, लेकिन कई स्कूल हर साल यह फीस वसूल रहे हैं।
कॉपी-किताब और वर्दी का महंगा खेल
निजी स्कूलों में कॉपी-किताब, यूनिफॉर्म, जूते और बैग की दुकानें खुल चुकी हैं, जहां से महंगे दामों पर सामान खरीदने के लिए अभिभावकों को मजबूर किया जा रहा है। सीबीएसई के नियमों के अनुसार, कोई भी स्कूल परिसर में किताबें या अन्य सामान नहीं बेच सकता, लेकिन इन नियमों की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
प्रशासन की चुप्पी, शिक्षा विभाग की लापरवाही
स्कूलों को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है, लेकिन जब शिक्षा व्यापार बन जाए तो अभिभावकों के लिए यह सबसे बड़ा संकट बन जाता है। कृष्ण लाल बवेजा, आरडब्ल्यूए सेक्टर 26 के प्रधान, ने कहा, "जब सरकार 'एक देश, एक चुनाव' की बात कर सकती है, तो 'एक देश, एक शिक्षा नीति' क्यों लागू नहीं कर सकती? हर साल स्कूलों की मनमानी बढ़ती जा रही है, और शिक्षा विभाग मूकदर्शक बना हुआ है।"
सरकार को चाहिए कि इस लूट पर तत्काल रोक लगाए और सुनिश्चित करे कि सभी स्कूल शिक्षा विभाग के तय नियमों के अनुसार ही फीस वसूले। यदि प्रशासन इसी तरह आंखें मूंदे बैठा रहा, तो आने वाले वर्षों में शिक्षा का स्तर गिरने के साथ-साथ अभिभावकों की आर्थिक मुश्किलें और बढ़ेंगी।
कमेटी बनी, लेकिन रिपोर्ट कहां गई?
चंडीगढ़ निदेशक शिक्षा विभाग ने स्कूलों में अभिभावकों की शिकायतों पर कार्रवाई के लिए एक कमेटी बनाई थी, लेकिन आज तक उस कमेटी की कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई। अभिभावकों को यह भी नहीं पता कि इस कमेटी ने अब तक क्या जांच की और क्या कदम उठाए।
हर साल नई किताबें और वर्दी, अभिभावकों की जेब पर बोझ
प्राइवेट स्कूलों में हर साल नई किताबें और वर्दी अनिवार्य कर दी जाती हैं, जिससे अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक दबाव पड़ता है। शिक्षा विभाग इस पर रोक लगाने के बजाय चुप्पी साधे बैठा है।
प्रशासन और शिक्षा विभाग मूकदर्शक
चंडीगढ़ प्रशासन और शिक्षा विभाग आंखें मूंदकर निजी स्कूलों की मनमानी को बढ़ावा दे रहे हैं। फीस बढ़ोतरी और जबरन वसूली के बावजूद अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। क्या प्रशासन जागेगा या अभिभावकों को इसी तरह लूटा जाता रहेगा?
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