विश्व मौसम विज्ञान दिवस पर विशेष मौसम विशेषज्ञ डॉ चंद्र मोहन की जुबानी
लगातार बदल रहे मौसमी चक्र के साथ कृषि फसल चक्र को बदलने की जरूरत डॉ चंद्र मोहन
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 23 मार्च। सम्पूर्ण भारत में लगातार जलवायु परिवर्तन का प्रभाव साफ तौर पर देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन से सम्पूर्ण इलाके में मौसम की चाल बिगड़ रही है। पिछले कुछ सालों से लगातार मौसम की चरम स्थितियां देखने को मिल रही है। गर्मियों में प्रचण्ड गर्मी, सर्दियों में प्रचण्ड ठंड, जहां पहले सूखाग्रस्त इलाके थे वहां अत्यधिक बारिश से बाढ़ और जलभराव की स्थिति, वैसे ही जहां पहले बाढ़ आती थी वहां सूखाग्रस्त क्षेत्र होने लगा है वहां आमजन बारिश को तरसे है । सर्दी के दिनों में कमी गर्मी के दिनों में बढ़ोत्तरी हो रही है। ऋतुओं के चक्र में भी बदलाव देखने को मिल रहा है। पिछले कुछ सालों से सर्दी और गर्मी का असर आमतौर पर देरी से महसूस हो रहा है मानसून का आगमन और वापिसी भी देरी से होने लगी है।बसंत ऋतु के दर्शन ही नहीं होते हैं। इस प्रकार मौसम की गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन को समझने हेतु लगातार मौसम विशेषज्ञ आमजन को लगातार मौसम और जलवायु की सुचनाएं देते हैं। मौसम विभाग और मौसम वैज्ञानिकों को समर्पित विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है। मौसम विशेषज्ञ डॉ चंद्र मोहन ने बताया कि मौसम विशेषज्ञ डॉ चंद्र मोहन ने बताया कि
मौसम हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल हमारे दैनिक कार्यों को प्रभावित करता है, बल्कि कृषि, स्वास्थ्य और व्यापार, में और देश के विकास में अहम भूमिका निभाता है।प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज के समय में जलवायु परिवर्तन एक बड़ी चुनौती बन गया है, जिसके कारण चरम मौसमी घटनाएं जैसे तूफान, सूखा और बाढ़ बढ़ रही हैं। विश्व मौसम दिवस हमें इन मुद्दों पर विचार करने और पर्यावरण संरक्षण के लिए कदम उठाने की प्रेरणा देता है।
आइए, इस दिन को मौसम विज्ञानियों के योगदान को सम्मानित करने और एक स्थायी भविष्य के लिए प्रतिबद्धता जताने के रूप में मनाएं।जलवायु परिवर्तन से सम्पूर्ण इलाके में लगातार मौसम परिवर्तन के व्यार लगातार साफ़ तौर पर देखने को मिल रहें हैं । जलवायु परिवर्तन के साथ अल-नीनो और ला-नीनो भी मौसम और ऋतुओं में बदलाव की मुख्य भूमिका अदा करते हैं जिसकी वजह से मानसून के आगमन और वापिसी में बदलाव और लगातार कमजोर पश्चिमी मौसम प्रणालियों का कमजोर होना साथ ही साथ ऊपरी वायुमंडल की जेट धाराओं का डायवर्सन आदि भी मौसम चक्र में परिवर्तन कर रहे हैं। इसके अलावा मानव के द्वारा लगातार अमानवीय कृत्य और व्यवहार जिनमें पेड़ों की कटाई,खनन कार्य, परिवहन के साधन, उधोगों, अनियंत्रित जनसंख्या, नगरीकरण, जहरीली गैसों का स्राव ,ग्रीनहाउस प्रभाव, पराली जलाने की गतिविधियां, पर्यावरण प्रदूषण, गंदगी के बड़े बड़े पहाड़, जहरीले पदार्थ और पानी का फैलाव,भी जलवायु परिवर्तन और इसी प्रकार के अनेकानेक कारण है जिसकी वजह से सम्पूर्ण इलाके में लगातार जलवायु परिवर्तन से और मौसम चक्र में बड़े पैमाने पर बदलाव हो रहे हैं। गर्मी हो रही है लम्बी और सिकुड़ रहा है सर्दी और बरसात का दायरा और बसंत ऋतु समाप्त प्राय हों रही है। इसलिए मानव को प्रकृति से खिलवाड़ की जगह उसके साथ सामंजस्य करने की जरूरत है। साथ ही साथ किसान भाइयों को भी इस मौसमी चक्र में बदलाव के साथ अपने कृषि फसलों के चक्र को सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है। क्योंकि पिछले कुछ सालों से लगातार कृषि गतिविधियों जैसे बिजाई और कटाई पर मौसम की चरम स्थितियों का प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहा है।वर्तमान परिदृश्य में लगातार मौसम में बदलाव और तापमान में उतार चढाव और कड़ाके की ठंड की चरम स्थितियां देखने को मिल रही है।जलवायु परिवर्तन और मौसम चक्र का प्रभाव पेड़ पौधे शाकाहारी मांसाहारी और मानव पर ही नहीं बल्कि फसल चक्र को भी प्रभावित कर रहा है। पिछले काफी सालों से लगातार सर्दियों के दिनों हो रही कमी और गर्मी के दिनों में बढ़ोत्तरी हो रही है ।हमें इस जलवायु परिवर्तन का असर मौसम पर साफ तौर पर देखने को मिल रहा है । इस बार सीजन में प्रदेश में 15 दिसंबर से ठंड पड़नी शुरू हुई जबकि अक्टूबर के बाद से ही सर्दियों का सीजन शुरू हो जाता है। वहीं दिसंबर तक कड़ाके की ठंड लोगों को महसूस होने लगती थी जबकि इस साल दिसंबर में कड़ाके की ठंड नदारद रही जबकि जनवरी महीने में ठंड की चरम स्थितियां बनीं हुईं हैं आमतौर पर मक्र संक्रांति के बाद सर्दी कम होने लगती है परन्तु उसके उल्टा ही देखने को मिल रहा है पिछले साल फरवरी में रिकॉर्ड तोड तापमान में बढ़ोतरी और मार्च अप्रैल में रिकॉर्ड तोड तापमान में गिरावट दर्ज हुई थी साथ ही साथ मई नौतपा नहीं तपा यानी मौसम में लगातार उलट फेर हों रहें हैं। ऐसे में सर्दियों के दिन कम हो रहे हैं। यह इंसानों के साथ-साथ फसल चक्र को भी प्रभावित कर रहा है। तापमान में हुआ फेरबदल सीधे तौर पर मानव और सभी जीवों को विभिन्न बीमारियों के रूप में प्रभावित करता है। इसके साथ ही पेड़ पौधे और कृषि फसलों के उत्पादन को भी प्रभावित करता है।
*विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाने का उद्देश्य*
विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को मौसम विज्ञान और मौसम विज्ञान सेवाओं के महत्व के बारे में जागरूक करना है। इन सेवाओं में मौसम का पूर्वानुमान, जलवायु निगरानी और जल विज्ञान शामिल हैं।
मौसम विशेषज्ञ किसानों व्यापारियों प्रशासन को बारिश सुखा, बाढ़,हीट वेब, कोल्ड वेब, तेज हवाएं आंधी तूफान धुंध कोहरा ओलावृष्टि, पाला जमने, प्रदूषण और सभी मौसम के सभी पहलुओं और मौसम की चरम परिस्थितियों को लेकर जानकारी देते है इसके माध्यम प्रिंट मीडिया इलेक्ट्रॉनिक्स डिजिटल मीडिया फिर सोशल मीडियम से दी जाती है। इसमें अलग से केंद्र सरकार की योजना से कृषि विश्वविद्यालय और रिसर्च सेंटर और मौसम सब सैंटर खोले गए है। जो मौसम विभाग के साथ मिलकर मौसम की जानकारी और रिपोर्ट देता है। सीजन के हिसाब से मौसम की जानकारी दी जाती है, यहां पर यह बताया जाता है कि, मौसम फसल के लिए कैसा है बुवाई करना चाहिए या नहीं। सावधानियों को भी इसमें शामिल किया जाता है।विश्व मौसम दिवस हर साल 23 मार्च को मनाया जाता है। यह दिन मौसम विज्ञान के महत्व को उजागर करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। 1950 में आज ही के दिन विश्व मौसम संगठन (WMO) की स्थापना हुई थी, जिसका उद्देश्य मौसम, जलवायु और जल संसाधनों से संबंधित जानकारी साझा करना है।
*विश्व मौसम विज्ञान दिवस कामहत्व* : यह दिन लोगों को मौसम और जलवायु के बारे में शिक्षित करने और उन्हें मौसम संबंधी खतरों के बारे में जागरूक करने का अवसर प्रदान करता है। तथा मौसम विज्ञान सेवाओं के महत्व को उजागर करता है, जो लोगों और व्यवसायों को मौसम संबंधी निर्णयों के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करते हैं। अत: मौसम विज्ञान सेवाओं को बढ़ावा देना इस दिन का मुख्य उद्देश्य है। साथ ही यह दिन मौसम विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है, जो मौसम और जलवायु संबंधी चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक है।
डॉ चन्द्र मोहन नोडल अधिकारी पर्यावरण क्लब राजकीय महाविद्यालय नारनौल
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