बेटी बचाओ एक अभियान नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प होना चाहिए: कुमारी सैलजा
हरियाणा में लिंगानुपात में गिरावट गंभीर चिंता का विषय, लिंग निर्धारण रैकेट चलाने वालों पर हो सख्त कार्रवाई
बाबूशाही ब्यूरो
चंडीगढ़, 11 अप्रैल।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने कहा है कि हरियाणा में सामने आ रहे कन्या भ्रूण हत्या के मामला हमारी व्यवस्था, कानून और सामाजिक चेतना की गंभीर विफलता को उजागर करते है। जहां बेटियों को जन्म से पहले ही मिटा देने का सौदा खुलेआम हो रहा हो, वहां ‘बेटी बचाओ’ केवल एक नारा बनकर रह जाता है। कुमारी सैलजा ने प्रदेश सरकार ने अनुरोध किया है कि इस अमानवीय रैकेट की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोषियों को विधिसम्मत कठोरतम सज़ा दी जाए। ‘बेटी बचाओ’ एक अभियान नहीं, एक राष्ट्रीय संकल्प होना चाहिए।
मीडिया को जारी बयान में सांसद कुमारी सैलजा ने कहा है कि नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) के आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में फिलहाल जन्म के समय लिंगानुपात 910 है, जो 2019 के 923 के मुकाबले 08 साल का सबसे कम स्तर है। 2024 में 516,402 बच्चों में से 52.35 प्रतिशत लड़के और 47.64 प्रतिशत लड़कियां पैदा हुई हैं। हरि की भूमि हरियाणा के पानीपत से ही बेटी बचाओ बेटी पढा़ओं का नारा दिया गया था, आज प्रशासनिक उपेक्षा के चलते यह सिर्फ नारा ही बनकर रह गया है क्योंकि लिंगानुपात में व्यापक सुधार नहीं दिख रहा है। लिंगानुपात में उतार-चढ़ाव इस बात की ओर संकेत कर रहा है कि कही न कही कुछ तो गडबड़ हो रही है। लिंग जांच का धंधा हरियाणा में तेजी पकड़ता जा रहा है पर पडोसी राज्यों में आज भी जारी है। हरियाणा की गर्भवती महिलाओं को पडोसी राज्यों में ले जाकर भ्रूण के लिंग की जांच करवाई जा रही है, लड़की होने पर गर्भपात भी करवाया जा रहा है। 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पानीपत की भूमि से ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान शुरू किया था पर 2020 के बाद से लगातार लिंगानुपात में गिरावट जारी है। लिंग निर्धारण रैकेट चलाने वालों ने इस खेल को आगे बढ़ाया है और विशेष पीएनडीटी टीमें और पुलिस अधिकारी खुद को इनके पीछे ही पाते हैं।
कुमारी सैलजा ने कहा कि जन्मपूर्व लिंग निर्धारण तकनीकों की उपलब्धता के कारण लिंग-चयनात्मक गर्भपात को बढ़ावा मिला है, जिससे अनुपात में असंतुलन पैदा हुआ है। कुमारी सैलजा ने कहा कि गिरता लिंगानुपात इस बात की ओर साफ इशारा कर रहा है कि महिला भ्रूण हत्या रोकने वाले कानूनों का अनुपालन कमजोर हुआ है। समाज में अभी भी बेटियों को समान महत्व देने की सोच पूरी तरह विकसित नहीं हुई। सरकार अभी तक समाज में महिलाओं और लड़कियों के प्रति पुराने जमाने से चले आ रहे नजरिये को नहीं बदल पाई है। जिस दिन लोगों का नजरियां बदल गया उस दिन से लिंगानुपात उठना शुरू हो जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह समाज के हर व्यक्ति को साथ लेकर ही कन्या भ्रूण हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा सकती है।
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