चंडीगढ़ नगर निगम आर्थिक संकट में, पारदर्शिता जरूरी: पूर्व मेयर सुभाष चावला
संकट का हल निकालना चाहिए, न कि सिर्फ एक-दूसरे पर दोषारोपण करना
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 07 मार्च। चंडीगढ़ नगर निगम की माली हालत लगातार खराब होती जा रही है। नगर निगम पर ठेकेदारों, कर्मचारियों और अधूरे विकास कार्यों के करोड़ों रुपये के बकाया हैं, लेकिन इसके बावजूद निगम प्रशासन बैठक दर बैठक एजेंडे पर एजेंडे पास कर रहा है। इस गंभीर स्थिति पर नगर निगम के पूर्व मेयर सुभाष चावला ने कड़ा बयान दिया है। उन्होंने अधिकारियों और पार्षदों से अपील की है कि वे पूरी वित्तीय स्थिति को जनता के सामने रखें और नगर निगम को आर्थिक संकट से बाहर निकालने के लिए ईमानदारी से कोशिश करें।
कई मोर्चों पर बकाया भुगतान, ठेकेदार और कर्मचारी परेशान
पूर्व मेयर सुभाष चावला ने कहा कि निगम पर कई मोर्चों पर भारी वित्तीय बोझ है, जिसकी सही जानकारी जनता को नहीं दी जा रही है। उन्होंने बताया कि:
ठेकेदारों की देनदारी करोड़ों में पहुंच चुकी है, जिससे कई विकास कार्य धीमी गति से चल रहे हैं या ठप हो गए हैं।
नगर निगम के स्थायी और अस्थायी कर्मचारियों का वेतन भी बकाया है।
ठेके पर रखे गए कर्मचारियों को भी समय पर वेतन नहीं मिल रहा।
करोड़ों के विकास कार्य अधूरे पड़े हैं और उनके लिए भी भुगतान करना बाकी है।
चावला ने कहा कि वर्तमान स्थिति में नगर निगम को सिर्फ उधारी पर चलाया जा रहा है, जिससे आने वाले दिनों में समस्याएं और बढ़ सकती हैं।
"500 करोड़ रुपये की एकमुश्त ग्रांट जरूरी"
पूर्व मेयर ने साफ कहा कि नगर निगम को फिर से विकास की राह पर लाने के लिए कम से कम 500 करोड़ रुपये की एकमुश्त ग्रांट की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि टैक्स लगाने या किसी नए सेस से थोड़ी बहुत राशि ही जुटाई जा सकती है, लेकिन वह भी इतनी जल्दी नहीं आएगी। ऐसे में बड़ी वित्तीय मदद के बिना निगम का सुचारू रूप से काम करना मुश्किल है।
उन्होंने कहा कि अधिकारियों और पार्षदों को मिलकर इस आर्थिक संकट का हल निकालना चाहिए, न कि सिर्फ एक-दूसरे पर दोषारोपण करना। उन्होंने आगे कहा कि अगर निगम की वास्तविक स्थिति जनता को बताई जाएगी, तो लोग भी समझेंगे कि समस्याएं कितनी गंभीर हैं।
जनता को गुमराह करने का आरोप
चावला ने आरोप लगाया कि नगर निगम में लगातार एजेंडे पास किए जा रहे हैं, लेकिन असल वित्तीय स्थिति को छुपाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जनता को इस भ्रम में नहीं रखा जाना चाहिए कि निगम ठीक से काम कर रहा है, जबकि हकीकत यह है कि विकास कार्यों की रफ्तार रुक गई है और ठेकेदारों को समय पर भुगतान नहीं हो रहा।
"हो सकता है मेरा आकलन गलत हो, लेकिन स्थिति गंभीर है"
सुभाष चावला ने यह भी कहा कि हो सकता है कि उनका आकलन पूरी तरह से सटीक न हो, लेकिन एक बात तय है कि नगर निगम की स्थिति बेहद गंभीर है। उन्होंने फिर दोहराया कि अगर पारदर्शिता अपनाई जाए और वास्तविक वित्तीय स्थिति को जनता के सामने रखा जाए, तो बेहतर समाधान निकाला जा सकता है।
नगर निगम की यह गंभीर स्थिति शहर के विकास कार्यों और बुनियादी सेवाओं पर असर डाल सकती है। ऐसे में सवाल उठता है कि:
क्या प्रशासन 500 करोड़ रुपये की एकमुश्त ग्रांट की मांग करेगा?
क्या पार्षद और अधिकारी मिलकर वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करेंगे?
क्या निगम प्रशासन कोई ठोस रणनीति बनाएगा या सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप चलता रहेगा?
जनता को अब निगम प्रशासन से ठोस कदमों की उम्मीद है। क्या यह उम्मीद पूरी होगी या चंडीगढ़ नगर निगम का आर्थिक संकट और गहराएगा? इसका जवाब आने वाले समय में मिलेगा।
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