पीजीआईएमईआर में नवजात सेप्सिस पर दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ
बाल रोग विशेषज्ञों ने नवजात संक्रमण के रोकथाम और उपचार पर साझा किए महत्वपूर्ण शोध
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 8 मार्च 2025 – पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में आज नवजात शिशुओं में सेप्सिस (गंभीर संक्रमण) पर दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ हुआ। इस कार्यशाला में 100 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञ और नवजात विशेषज्ञ शामिल हुए। उद्घाटन समारोह का नेतृत्व पीजीआईएमईआर के निदेशक प्रो. विवेक लाल ने किया।
नवजात सेप्सिस: बढ़ती चुनौती और नई चिकित्सा रणनीतियाँ
कार्यशाला की शुरुआत पीजीआईएमईआर के प्रोफेसर वेंकटेशण के उद्घाटन व्याख्यान से हुई, जिसमें उन्होंने नवजात सेप्सिस के बढ़ते मामलों, एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों और फंगल संक्रमणों के उभरते खतरों पर प्रकाश डाला।
डॉ. शिव साजन सैनी ने नवजात सेप्सिस के जोखिम कारकों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि समय से पहले जन्म, माताओं में प्रसव पूर्व संक्रमण और पानी की थैली जल्दी फटने जैसी स्थितियाँ नवजात में गंभीर संक्रमण का खतरा बढ़ाती हैं।
नवजात संक्रमण की पहचान और एंटीबायोटिक नीति
चंडीगढ़ के गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के प्रो. दीपक चावला ने उन माताओं को एंटीबायोटिक्स देने की नीति पर चर्चा की, जिनके शिशु को संक्रमण का अधिक खतरा होता है। एम्स, नई दिल्ली के प्रो. रमेश अग्रवाल ने नवजात शिशुओं में संक्रमण के नैदानिक लक्षणों की पहचान पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि नवजात सेप्सिस के लक्षण कई अन्य बीमारियों से मिलते-जुलते हैं, जिससे सही समय पर निदान करना चुनौतीपूर्ण होता है।
एम्स, नई दिल्ली के प्रो. जीवा शंकर ने बताया कि नवजात शिशुओं में संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक संयोजनों का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अस्पतालों में संक्रमण डेटा को रिकॉर्ड करने और इसके आधार पर एंटीबायोटिक उपयोग की तर्कसंगत नीति बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रो. सौरभ दत्ता ने एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यक न्यूनतम अवधि निर्धारित करने की जरूरत पर जोर दिया, ताकि अनावश्यक एंटीबायोटिक उपयोग से प्रतिरोधी संक्रमणों का खतरा कम किया जा सके।
प्रयोगशाला परीक्षणों की भूमिका
मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी के पूर्व प्रमुख प्रो. पल्लब रे ने ब्लड कल्चर टेस्ट की भूमिका पर विस्तृत जानकारी दी, जो नवजात शिशुओं में रक्त संक्रमण की अंतिम पुष्टि करने वाला महत्वपूर्ण परीक्षण है।
सूर्या हॉस्पिटल, मुंबई के डॉ. नंदकिशोर काबरा ने डीएनए आधारित नई निदान तकनीकों पर चर्चा की, जिनकी मदद से नवजातों में संक्रमण की तेजी से पहचान की जा सकती है।
संक्रमण रोकथाम पर पैनल चर्चा
कार्यशाला के अंत में नवजात आईसीयू (NICU) में संक्रमण रोकथाम पर एक पैनल चर्चा आयोजित की गई। इसका संचालन प्रो. कन्या मुखोपाध्याय ने किया, जिसमें एमएम मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा अधीक्षक प्रो. अश्विनी सूद, गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, चंडीगढ़ के प्रो. सुक्षम जैन और पीजीआईएमईआर के प्रो. मनीषा बिस्वाल सहित विशेषज्ञों ने भाग लिया।
परिवार के सदस्यों की मुलाकात नीतियों, वेंटिलेटर और कैथेटर से संक्रमण रोकने के तरीकों, तथा माँ के दूध के महत्व पर भी विस्तृत चर्चा हुई।
व्यावहारिक सत्र: नवजात देखभाल की आधुनिक तकनीकें
दिन का समापन तीन महत्वपूर्ण व्यावहारिक मिनी कार्यशालाओं के साथ हुआ, जिसमें नवजात शिशुओं में आक्रामक चिकित्सा प्रक्रियाओं को डमी और मैनिकिन की मदद से प्रदर्शित किया गया।
प्रतिनिधियों को रीढ़ की हड्डी से तरल पदार्थ निकालने, छाती में ट्यूब डालने और नाभि में कैथेटर डालने जैसी प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण दिया गया, जिससे उन्हें वास्तविक जीवन की स्थिति का अनुभव करने का अवसर मिला।
इस कार्यशाला में नवजात सेप्सिस के निदान, उपचार और रोकथाम के विभिन्न आयामों पर गहन चर्चा हुई। विशेषज्ञों ने सहमति जताई कि एंटीबायोटिक दवाओं के विवेकपूर्ण उपयोग और उन्नत प्रयोगशाला परीक्षणों की मदद से नवजात संक्रमणों के प्रभावी प्रबंधन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की जा सकती है।
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