स्कूलों की मनमानी, अभिभावक बेबस
चिह्नित दुकानों से खरीदनी पड़ रही महंगी किताबें, नर्सरी की किताबें 2600 की और बीए की 2660 की
भारी बस्ते से हल्की हुई पेरेंट्स की जेबें
कमीशन के चक्कर मे बस्ता हुआ भारी
रमेश गोयत
चंडीगढ़/पंचकूला,09 मार्च। ट्राईसिटी के प्राइवेट स्कूलों की मनमानी का शिकार अभिभावक हर साल नए शिक्षा सत्र की शुरुआत में भारी आर्थिक बोझ झेलने को मजबूर हैं। एडमिशन फीस और अलग-अलग ‘फंडों’ के नाम पर पहले ही जेब ढीली करने वाले स्कूल अब किताबों की खरीद को लेकर भी अपनी शर्तें थोप रहे हैं। हालत ये है कि सैकड़ों बुकस्टोर्स के बावजूद अभिभावकों को कुछ चुनिंदा दुकानों से ही महंगे दामों पर किताबें खरीदनी पड़ रही हैं।
स्कूलों और दुकानों की ‘सेटिंग’ का खेल
सेक्टर-19 की एक दुकान पर हर रोज सैकड़ों अभिभावकों की भीड़ जुट रही है। यह अकेली दुकान है जहां मोहाली, जीरकपुर, डेराबस्सी और पंचकूला के स्कूलों की किताबें उपलब्ध हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर स्कूलों ने इन्हीं दुकानों को क्यों चुना? कई अभिभावकों का आरोप है कि स्कूलों और इन दुकानदारों के बीच गहरी ‘सेटिंग’ है, जिससे बुकस्टोर्स और अभिभावकों की लूट का यह खेल लंबे समय से चल रहा है।
किताबों की कीमतों ने उड़ाए होश
- नर्सरी कक्षा की किताबों का सेट ₹2611 में मिल रहा है।
- एलकेजी के लिए ₹3300 से ₹3500 तक खर्च करने पड़ रहे हैं।
- माध्यमिक कक्षा के लिए किताबों का सेट ₹5600 तक पहुंच चुका है।
- बीए फाइनल ईयर की सारी किताबें ₹2660 में मिल रही हैं, जो नर्सरी के सेट से भी सस्ती हैं।
हर साल बदली जाती हैं किताबें
चंडीगढ़ निवासी कृष्ण लाल बवेजा और पंचकूला के प्रदीप ने सवाल उठाया कि स्कूल हर साल किताबें क्यों बदल देते हैं? अगर शिक्षा विभाग पाठ्यक्रम में बदलाव करता है, तब तो यह जायज है, लेकिन बिना किसी बदलाव के नए पब्लिशर की किताबें क्यों थोप दी जाती हैं?
सरकारी आदेश भी नहीं हो रहे लागू
चंडीगढ़ प्रशासन के शिक्षा विभाग का दावा है कि एनसीईआरटी की बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें थोपने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। लेकिन हकीकत यह है कि प्राइवेट स्कूल अब भी महंगी किताबें धड़ल्ले से लगवा रहे हैं और प्रशासन सिर्फ बयानबाजी कर रहा है।
अभिभावकों की मजबूरी – किताबें ऑनलाइन भी नहीं मिलतीं
एक अभिभावक ने बताया, “स्कूल की किताबें ऑनलाइन भी नहीं मिलतीं। ऊपर से नोटबुक में स्कूल का नाम लिखा होता है, जिससे हम कहीं और से खरीद भी नहीं सकते।” उन्होंने सवाल किया कि अगर स्कूल किसी खास दुकान से किताबें बिकवा रहे हैं, तो पास की दुकान में क्यों नहीं उपलब्ध कराते?
प्रशासन को चाहिए सख्त कार्रवाई
कृष्ण लाल बवेजा ने कहा कि प्रशासन ने बुक विक्रेताओं को गाइडलाइन तो जारी की है, लेकिन अभिभावकों के लिए कोई हेल्पलाइन नंबर या शिकायत तंत्र नहीं बनाया। उन्होंने प्रशासन से जल्द से जल्द एक हेल्पलाइन नंबर जारी करने और इस लूटखसोट पर सख्ती से लगाम लगाने की मांग की।
शिक्षा विभाग की चेतावनी – होगी जांच
हरियाणा के डायरेक्टर स्कूल एजुकेशन हरिंदर पाल बराड़ ने कहा, "कोई भी बुक डीलर अभिभावकों को किताबों के अलावा कॉपियां या अन्य सामान खरीदने को मजबूर नहीं कर सकता। शिक्षा विभाग खुद जाकर निरीक्षण करेगा और नियम तोड़ने वालों पर सख्त कार्रवाई करेगा।"
अभिभावकों की अपील – इस मनमानी को रोका जाए
पेरेंट्स का कहना है कि सरकार को जल्द कोई ठोस कदम उठाना चाहिए, ताकि स्कूलों और दुकानदारों की मिलीभगत से होने वाली इस लूट को बंद किया जा सके। क्या शिक्षा एक व्यवसाय बन चुकी है, जहां अभिभावकों की जेब काटकर ही सिस्टम चलता है?
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