कैथल जिले का अनोखा गांव, जहां 300 साल से नहीं खेली जाती होली
रमेश गोयत
चंडीगढ़, 8 मार्च 2025 – भारत में जहां होली का त्यौहार उमंग और उत्साह से मनाया जाता है, वहीं हरियाणा के कैथल जिले के दुसेरपुर गांव में यह पर्व पिछले 300 वर्षों से नहीं मनाया जाता। इस परंपरा के पीछे एक ऋषि का श्राप बताया जाता है, जिसने गांव को होली से दूर कर दिया।
ऋषि के श्राप से दूर हुई होली की रंगत
गांव के बुजुर्गों के अनुसार, करीब 300 साल पहले गांव में होलिका दहन की तैयारियां चल रही थीं। ग्रामीण लकड़ियां, उपले और अन्य सामग्री इकट्ठा कर रहे थे। लेकिन कुछ युवकों ने समय से पहले ही होलिका दहन कर दिया।
गांव के एक संत स्नेही राम साधु ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, लेकिन युवाओं ने उनकी बात नहीं मानी और उनका मजाक उड़ाने लगे। इससे साधु क्रोधित हो गए और उन्होंने जलती होलिका में छलांग लगा दी। इसके साथ ही उन्होंने गांव वालों को श्राप दिया कि अब से इस गांव में कोई होली नहीं मना पाएगा, जो भी ऐसा करेगा उसे दुष्परिणाम भुगतने होंगे।
श्राप से मुक्त होने का उपाय, लेकिन अब तक नहीं मिली मुक्ति
साधु ने श्राप से मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय भी बताया था। उन्होंने कहा था कि अगर होली के दिन गांव में कोई गाय बछड़े को जन्म दे या किसी घर में बच्चा पैदा हो जाए, तो यह श्राप खत्म हो जाएगा।
लेकिन 300 साल बीत चुके हैं और अब तक ऐसा कोई संयोग नहीं बना। इस कारण गांव में आज भी होली नहीं खेली जाती और लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं।
आज भी कायम है गांव की अनोखी परंपरा
गांव के लोग श्राप के डर से होली नहीं मनाते, लेकिन वे इस त्यौहार का सम्मान करते हैं। वे अन्य धार्मिक अनुष्ठानों और हवन आदि का आयोजन करते हैं, लेकिन रंग नहीं खेलते।
दुसेरपुर गांव की यह अनूठी परंपरा इसे हरियाणा के बाकी गांवों से अलग बनाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो यह केवल एक मान्यता हो सकती है, लेकिन गांववालों के लिए यह आस्था का विषय है, जिसे वे पीढ़ियों से निभाते आ रहे हैं।
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